Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2017 at 9:18pm — 17 Comments
ग़ज़ल
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(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )
सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |
दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |
रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |
जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |
हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |
आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 13, 2017 at 12:44pm — 16 Comments
ग़ज़ल
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(फऊलन-फऊलन -फऊलन -फऊलन )
लगी को बुझाने को जी चाहता है |
तुम्हें कब से पाने को जी चाहता है |
यक़ीनन बड़ी मुज़त् रिब है शबे ग़म
मगर मुस्कराने को जी चाहता है |
समुंदर से गहरी हैं आँखें तुम्हारी
यहीं डूब जाने को जी चाहता है |
तेरे नाम में भी बहुत है हलावत
इसे लब पे लाने को जी चाहता है |
तेरे अहदे माज़ी से वाक़िफ़ हैं फिर भी
नयी चोट खाने को जी चाहता है |
मुसलसल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 4, 2017 at 9:59pm — 16 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2017 at 8:34pm — 18 Comments
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