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PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – May 2013 Archive (6)

पिकहा बाबा उवाच ------ मदद- इसकी आदत डालें//कुशवाहा //

पिकहा बाबा उवाच  ------ मदद- इसकी आदत डालें//कुशवाहा //

 

            पहले के समय में समर्थ व्यक्ति अपनी सम्पत्ति से धर्मशाला, तालाब, कुऐं, शिक्षण पाठशालायें  इत्यादि बनवाता था। आज के समय में लोग एक संगठन बना कर धनराशि , सामग्री इत्यादि समाज से लेकर सेवा कर रहे हैं परन्तु सरकार से अनुदान लेना मैं ठीक नही समझता। क्यों कि इस प्रकार से एकत्रित धन से वे अपने आवागमन, कार्यालय की आधुनिक सुख सुविधाओं की भी पूर्ति करते हैं। यद्यपि इस कार्य में कोई बुराई नही है क्यों कि इनके द्वारा की…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 16, 2013 at 1:32pm — 8 Comments

आजादी का मतलब //कुशवाहा //......कहानी

आजादी का मतलब

 

रामगढ़ के जमींदार ठाकुर दानवीर सिंह जैसा उनका नाम था उसी के अनुसार उनका चरित्र एवं व्यवहार था। गरीब कन्याओं के विवाह में मदद करना, किसान की फसल नष्ट होने पर उसके परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठाना या कोई भी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम हो तो उसमें अपना पूरा सहयोग देना उनकी प्राथमिकता थी। अतिथियों का स्वागत करने में तो उनका कोई सानी नही था। अस्पताल, धर्मशाला, विद्यालय उनके द्वारा बनवाये गये साथ ही पशुओं के लिये चारागाह इत्यादि की व्यवस्था भी थी। गरीब…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 4:03pm — 10 Comments

सांप नाथ -नाग नाथ उवाच //कुशवाहा //

सांप नाथ -नाग नाथ उवाच 

---------------------------------

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी 

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

कैसे आती है 

खून बहे रक्त नली में 

तारे टिमके जैसे जमी पर  

प्रेमियों को भाती है

बिजली आती है 

हाँ जी आती है 

सुनो सांप नाथ जी 

कहो  नागनाथ जी

--------------------

न आये तो क्या हो  करते

रात गुजर  कैसे  करते

जनता त्राहि त्राहि करती 

खेती किसानी करते…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 10:04am — 14 Comments

इन्कलाब //कुशवाहा //

क्या है 

इन्कलाब 
नहीं जानता 
शायद आप जानते हों 
हिंदी उर्दू अरबी फारसी 
लब्ज तो नहीं 
पञ्च तत्व 
पञ्च इन्द्रियां 
पञ्च कर्म 
या 
मुर्दा कौमों की 
संजीवनी बूटी ?
बस इतना जानता हूँ 
हाथ नहीं  पंजा नही 
एक बंधी मुट्ठी 
आशाओं को समेटे हुए 
आसमान को भेदते हुए 
सीने में दफ्न 
एक…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 10:00am — 14 Comments

गीत वो गा रहे // कुशवाहा //

गीत  वो गा रहे // कुशवाहा //

-----------------

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प झरें मुखार से 

तलवार देखते रहे 

------------------

मंच था सजा हुआ 

चमचों से अटा हुआ 

गाल सब बजा रहे 

भिन्न राग थे गा रहे 

सुन जरा  ठहर गया

भाव लहर में बह गया

चुनाव है  था विषय

आतुर सुनने हर शय

शब्द जाल फेंक वे 

जन जन  फंसा रहे 

गीत  वो गा रहे    

प्रचार देखते रहे 

पुष्प…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 2, 2013 at 9:01pm — 10 Comments

माँ //कुशवाहा //

माँ //कुशवाहा //

----

कोई याद रहे या न रहे

कोई साथ रहे या न रहे

हम रहें या  न रहें

तुम रहो या न रहो

हमेशा वो  रहती है

स्वयं और…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 1, 2013 at 5:04pm — 9 Comments

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