दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें
चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?
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एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ
चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.
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हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका
पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?
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चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो
मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.
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इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं
ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात
छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।
मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..
बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!
सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..
लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!
जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर
तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर
फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप
उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप !
मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 5, 2021 at 5:30pm — 10 Comments
(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)
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अभी-अभी तो मिली सजन से,
आकर मन में बस ही गये।
इस बन्धन के शुचि धागों को,
ईश स्वयं ही बांध गये।
उमर सलोनी कुञ्जगली सी,
ऊर्मिल चाहत है छाई।
ऋजु मन निरखे आभा उनकी,
एकनिष्ठ हो हरषाई।
ऐसा अपनापन पाकर मन,
ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,
और मेरे सपनों का राजा,
अंतरंग मालूम खड़ा।
अ: अनूठा अनुभव प्यारा,
कलरव सी ध्वनि होती है।
खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,
गहना…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 1, 2021 at 8:30am — 10 Comments
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