हासिल ग़ज़ल
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बेचैनियों का दौर बढा कर चली गयी ।
महफ़िल में वो बहार जब आ कर चली गयी ।।
उसकी मुहब्बतों का ये अंदाज़ था नया ।
अल्फ़ाज़ दर्दो ग़म के छुपाकर चली गयी।।
उसको कहो न बेवफ़ा जो मुश्क़िलात में ।
कुछ दूर मेरा साथ निभाकर चली गयी ।।
साक़ी भुला सका न उसे चाहकर भी मैं ।
जो मैक़दे में जाम पिलाकर चली गयी ।।
हैरां थी मुझ में देख के चाहत का ये शबाब…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2020 at 1:37pm — No Comments
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यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1
मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।
वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2
उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3
खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4
निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments
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दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।
काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।
क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।
मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।
सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2020 at 10:00am — 10 Comments
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