१२२ १२२ १२२ १२२ नया दर्द कोई जगा भी नहीं है |
न करना अभी बंद अपनी ये पलकें |
मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल … |
Added by rajesh kumari on June 27, 2016 at 10:30am — 17 Comments
मुक्त कर तम से जकड़ती मुट्ठियाँ
भोर की पहली किरण को भींच ले
व्योम से तुझको पटक कर
पस्त करके होंसलो को
चिन रही है गेह तुझमे
भावनाएँ हीन गुपचुप
मार सूखे का हथौड़ा
तोड़ कर तेरी तिजौरी
बाँध खुशियों की गठरिया
जा रहा है मेघ…
Added by rajesh kumari on June 20, 2016 at 11:30am — 12 Comments
2122 2122 212
जिंदगी में जीत भी कुछ हार भी
और यारो प्यार भी तकरार भी
लोग दरिया से उतारें पार भी
छोड़ देते बीच कुछ मजधार भी
हर कदम पे ही मिले हमको सबक
राह में कुछ फूल भी कुछ ख़ार भी
हम भले फुटपाथ पर धीमे चले
पार करने को बढ़ी रफ़्तार भी
जो मिले पैसे उसी में सब्र था
बीस आये हाथ में या चार भी
हम सदा खेला किये बस गोटियाँ
खेल में खंजर मिले तलवार…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 19, 2016 at 11:10am — 9 Comments
‘भूकंप’
“सेठ साहब, ये बुढ़िया रोज आती है और इस दीवार को छू छू कर देखती है फिर घंटो यहाँ बैठी रहती है मैं तो मना कर-कर के थक गया लगता है कुछ गड़बड़ है जाने सेंध लगवाने के लिए कुछ भेद लेने आती है क्या” चौकीदार ने कहा |
“माई, कौन है तू क्या नाम है तेरा और तेरा रोज यहाँ आने का मकसद क्या है”? साहब ने पूछा |
“जुबैदा हूँ सेठ साहब, आपने तो नहीं पहचाना पर आपके कुत्ते ने पहचान लिया अब तो ये भी बड़ा हो गया साहब देखिये कैसे पूंछ हिला रहा है”|
सेठ दीन दयाल भी ये देखकर…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 13, 2016 at 10:00am — 22 Comments
२१२२ २१२२ २१२
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
फूल को तो ले गई पछुआ हवा
रह गई बस डाल मालिन के लिए
फूल चुनकर बांटता उनको रहा
खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए
अपने आंगन में खिले अपने नहीं
फूल जंगल में खिले किन के…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 7, 2016 at 10:47am — 14 Comments
2212 2212 2212 2212
नखरे ततैय्ये से अजी इनको मिले भरपूर हैं
अपनी करें मन की खुदी खुद में बड़े मगरूर हैं
मतलब पड़े तारीफ़ करते हैं मगर सच बात ये
जोरू इन्हें मुर्गी, पड़ोसन सारी लगती हूर हैं
अंदाज इनके देख के गिरगिट भरें पानी यहाँ
पल में करेले नीम से पल में लगें अंगूर हैं
वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को
माँगें अगर साड़ी कहें जानम दुकानें दूर हैं
गाते चुराकर गीत ये चोरी की…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 4, 2016 at 5:19pm — 10 Comments
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