बेजान कमरे में
टूटी खटिया पे लेटा
करवट लेते हुए
आँखों के पूरे सूनेपन के साथ
कभी कभी खिड़की के
बाहर देखता हूँ
कैसी है दुनियां
क्या वैसी ही है
जैसी पहले हुआ करती थी
दर्द के समंदर में
निस्पंद जड़ सा
सोचता रहा
अपने ही अपने नहीं रहे
ये गुमशुदी का जीवन कब तक
एक चिंता जाती
तो दूसरी उत्पन्न
देखता रहता हूँ
सजीव कंकाल सा
इधर उधर
बस जिंदा हूँ
औपचारिक
राम शिरोमणि…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on July 28, 2013 at 8:00pm — 16 Comments
१-सहनशीलता
उत्पीडन की क्रीडा से उत्पन्न श्रान्ति से
पिंग बने टहल रहे
अकारण ही रंज रुपी हरिका खे रहे
मोषक को पोषक कहते
वाह!सहनशीलता की पराकाष्ठा
शायद!
खुद को काकोदर के मुख में फसा
मंडूक मान बैठे है
२-लिखता रहा
हृदयतल के तड़ाग से
अनकहे शब्द
अकुलाहट के साथ
बुलबुले बन
निकलते रहे निकलते रहे
पीड़ा है क्या ? नहीं तो
प्रेम है
विरह है
पता नहीं
फिर भी मै …
Added by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 8:30pm — 20 Comments
घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!
मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१
जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?
नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३
बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न…
Added by ram shiromani pathak on July 23, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
गुजरती नहीं रात
संघर्ष करता रहा नींद से,
जब भी लेता हूँ करवट
चुभने लगते है कांटे
यादों के.//1
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बहुत आभारी हूँ आपका
जिंदा तो छोड़ा पागल बनाकर ही सही//2
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दिल बहलाने का सामान
थोडा बहुत इनाम
बस इतने के लिए क्या?
स्वाभिमान बेच दूँ//3
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डर की निद्रा में विलीन
रात ही रात …
Added by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 6:30pm — 20 Comments
ऑफिस के बाहर खड़ा मै फोन पे बात कर रहा था,तभी अचानक एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया ! कुछ देर देखने के बाद मैंने उससे पूछा क्या?
तो उसने मेरे पैरों की तरफ इशारा किया...मै समझा नहीं फिर मै उसके कपड़े जो बहुत ही पुराने और फटे थे ,देखने लगा!!
इतने में उसने अपने थैले से बूट पोलिश करने का ब्रश और एक डिबिया निकाल ली...फिर तो मै समझ गया यह क्या कह रहा था !!
मुझे भी दया आ गयी कहा चालो भाई अब पोलिश कर ही दो...
मैंने जूते निकाले और वो अपने काम में मस्त…
Added by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 7:00pm — 16 Comments
आत्मा देखो मर गयी ,ह्रदय पाषाण हुआ !
मानवता मार चुके ,दिखते कसाई है !!
लूट पाट चोरी डाका ,इनका है काम यही !
लोगों का निचोड़ें खून ,चाटते मलाई हैं !!
भुखमरी से मरते,लोग बिलखाते जहाँ !
लाज शर्म पी चुके हैं ,भेजते दवाई हैं !!
ऐसे पापियों से…
Added by ram shiromani pathak on July 1, 2013 at 7:52pm — 10 Comments
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