शब्दों के घेरे
घेर लेते है मुझे
किसी चिड़िया की
मानिंद आ बैठते हैं
हृदय रूपी वृक्ष द्वार पर
कल्पनाओं की टहनी पर
फुदक फुदक कर
बनाते है नई रचनाये
गीत कवित्त कविताएं
कल्पनाओं की उड़ान
को देते हैं हर बार
नए पंख लगा बैठते
हर बार टहनी टहनी
मेरे नए जीवन की
हर सुबह को देते
एक सूरज नया । ............ अन्न्पूर्णा बाजपेई
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by annapurna bajpai on July 30, 2013 at 2:00pm — 11 Comments
जब तुम साथ न थे
प्रेम सुप्त पड़ा था
दिल मे दर्द बड़ा था
मरहम था तेरे पास
जब तुम साथ न थे ...............
हर रोज एक आशा
कब होगे मेरे पास,
मेरा दिल तेरे पास
तेरा दिल मेरे पास
जब तुम साथ न थे ..............
राह तकती थी अँखियाँ
सूनी सी थी पगडंडियाँ
न महकती थी फुलवारियाँ
बढ़ती जाती थी दुश्वारियाँ
जब तुम साथ न थे ....................
तेरा मुझको…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 25, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
फिर वही गीत दुहराओ प्रिय
मन की सूखी धरती पर
कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय
वीरान हो चला है हृदय
कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ....................
भग्न हदय सुप्त मन प्राण
अभिशापित सा हो चला जीवन
गहराती धुंध के बादल
कुछ रशमियां बिखराओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ...............अन्नपूर्णा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 11:00am — 19 Comments
याद आ गया फिर
मुझे मेरा बचपन ,
पिता की उंगली थामे,
नन्हें कदमों से नापना,
दूरियाँ, चलते चलते ,
वो थक कर बैठ जाना ,
झुक कर फिर पिता का ,
मुझको गोदी उठाना ,
चलते चलते मेहनत का,
पाठ वो धीरे से समझाना ।
बच्चों पढ़ना है सुखदाई,
मिले इसी मे सभी भलाई,
पहले कुछ दिन कष्ट उठाना,
फिर सब दिन आनंद मनाना,
फिर आ गया याद,
उनका ये गुनगुनाना ,
सिर पर वो उनका हाथ,
भर देता है मुझमे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 22, 2013 at 6:30pm — 13 Comments
सूरज की रश्मियों मे ,
चमक बन के रहते हो ।
जाग्रत करते सुप्त मन प्राण ,
सुवर्ण सा दमके तन मन ।
चन्द्रमा की शीतलता मे ,
धवल मद्धम चाँदनी से तुम,
अमलिन मुख प्रशांत हो ।
सागर से गहरे हो तुम ,
कितना कुछ समा लेते हो ।
नूतन पथ के साथी ,
जीवन तरंगो के स्वामी ।
मन हिंडोल के बीच ,
सिर्फ तुम किलोल कालिंदी । .
सुनो प्रिय तुम ही ,
तुम ही .....प्रिय तुम ही ।..... अन्नपूर्णा…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 9 Comments
टूटे रिश्तों की किरचियाँ ,
कभी जुड़ नहीं पातीं ,
शायद कोई जादू की छड़ी ,
जोड़ पाती ये किरचियाँ ।
.
ये चुभ कर निकाल देतीं हैं ,
दो बूंद रक्त की , और अधिक
चुभन के साथ बढ़ जाती है ,
पीड़ा न दिखाई देती हैं ।
.
चुप रह कर सह जाती हूँ ,
आँख मूँद कर देख लेती हूँ ,
शायद कोई प्यारी सी झप्पी ,
मिटा पाती ये दूरियाँ। .... अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on July 9, 2013 at 8:30pm — 6 Comments
(1)
ये ईश का दरबार है ,
खुश रंग गलीचे बिछे है ।
अंबर का है तम्बू तना है ,
रवि चन्द्र तारे जगमगाते ।
कैसी ये मौजे बहार है ॥
(2)
नदियों मे बहता नीर है ,
वायु का वेग गंभीर है ।
सागर की है अनुपम छटा ,
जहां रत्न का भरा भंडार है।।
(3)
न्यायकारी निर्विकारी ,
तू जगत करतार है ।
तेरी महिमा अति अगम ,
नहीं जिसका पारावार है ॥
(4)
इकरार नहीं पूरा किया ,
ज्यो किया गर्भ मे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on July 1, 2013 at 6:00pm — 2 Comments
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