धरती तो आधार है, जा न सके उस पार
जन्म,मरण अरु परण का,धरती ही आधार|
पञ्च तत्व से जन्म ले,पाय धरा की गोद
हरेभरे उपवन खिले, प्राणी करे प्रमोद |
धरती गगन जहां मिले,लगे नीर की झील
हिरन दौड़ते खोजने, निकले मीलो मील |
हीरे मोती कुछ नहीं, जितनी धरा अमूल्य,
सभी मिले भूगर्भ में, बिन माटी सब शून्य|
निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,
साँसों की डोरी थमे, जाय संपदा हीन |
(मौलिक व्…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2013 at 12:00pm — 12 Comments
जेल जाय अपराध में, करते वे पद त्याग,
जन प्रतिनिधि क़ानून में,इससे उल्टा राग |
संविधान में निहित है, मूलभूत अधिकार,
सबको समान हक़ मिले, भेद करे सरकार |
रुपया गिरता देखकर, डालर मुंह बिचकाय,
बढे कर्ज के बोझ से, चिंता घेरे जाय |
कर्ज विदेशी बढ़ रहा, इधर तेल के दाम,
काला धन स्विस बैंक में,भुगते जन अंजाम|
रकम जमा स्विस बैंक में, घरवाले अनजान,
भेद दिए बिन चल बसे, घर के सब हैरान|
(मौलिक…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 14, 2013 at 4:00pm — 12 Comments
देश में फल-फूल रहा, सट्टे का बाजार,
कुछ लोगो के बिक रहे,देखो सब घर बार |
सट्टा गर सरकार का, नियमो में वह वैध
जनता गर सट्टा करे, उसको कहे अवैध |
राजनीति व्यवसाय है,दीमक जैसी चाट
घोटाले करते रहे, कुर्सी के है ठाट |
राजनीति में जो सफल,घोटालो में लिप्त,
इस धंधे में देख लो,नेता सब संलिप्त |
बहुत संपदा पास में, कल तक तो थे रिक्त
नित्य संपदा…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
एकाकीपन साँझ का, मन विचलित करजाय
इस पड़ाव पर उम्र के , बनता कौन सहाय |
सुन्दर हर पल वह घडी,अनुपम सा उपहार
साँस साँस की हर लड़ी,करती जैसे प्यार |
होठ छुअन अहसास ही, मुग्ध मुझे करजाय,
संयम त्यागा स्वपन में, चंचल मन भटकाय |
बहका बहका दिख रहा, खुद का ही व्यवहार
जैसे सब कुछ ख़त्म है, मन मेरा लाचार |
मेरे जीवन में बसे, रूप धरा श्रृंगार,
पोर पोर में बह रही, बनी सतत रसधार |
-लक्ष्मण…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2013 at 12:30pm — 21 Comments
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