आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल
22 22 22 22 22 2
उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है
***********************************
जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है
तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है
समाचार में वो सुन कर आया होगा
एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है
वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये
सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है
भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:00am — 18 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है
कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है
यातायात नियम से वो जो चलना चाहा
बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है
किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ
हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है
दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो
आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है
चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो
सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 14 Comments
22 22 22 22 22 2
गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है
धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है
वो बयान से खुद साबित कर देते हैं
जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है
बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?
समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है
बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं
अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है
सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में
हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?
कभी फटा था…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
हम तो रह गये देख के मंज़र, हक्के बक्के
सारे मूछों वाले निकले ब्च्चे बच्चे
अजब न समझें, पूँछ दबी तो कुत्ता रोया
पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे
परिणामों की आशा चर्चा से मत करना
केवल बातों के निकलेंगे लच्छे लच्छे
हर दिमाग में छन्नी ऐसी लगी मिलेगी
सारे बाहर रह जाते हैं , सच्चे सच्चे
इक चावल का दाना देखो, कच्चा है गर
सारे चावल तुम्हें मिलेंगे ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:20am — 20 Comments
सर पर छत थी वो गयी , भीत भीत चहुँ ओर
रक्ष रक्ष मैं रेंकता , चोर मचाये शोर
सबकी चिंता है अलग, सब में थोड़ा फर्क
सब कहते वो पाप है, वो जायेगा नर्क
स्वार्थ सदा रहता छिपा, सब रिश्तों के बीच
लेकिन वह जो बोल दे, कहलाता है नीच
सबकी अपनी व्यस्तता, सब के अपने राग
सर्व समाहित सोच से , तू भी थोड़ा भाग
सब तक सीढ़ी है बना , पायेगा अनुराग
पत्थर को ठोकर मिली , रे मानुष तू…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 8, 2016 at 9:00am — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 – बहरे मीर
आज उठाये घूम रहे हैं जिनको सर में
वो सब पटके जाने लायक हैं पत्थर में
अपनी बीमारी को बीमारी कह सकते
इतनी भी ताक़त देखी क्या, ज़ोरावर में ? (ताक़तवर)
फेसबुकी रिश्ते ऐसे भी निभ जाते हैं
वो अपने घर में कायम, हम अपने घर में
रोज उल्टियाँ वैचारिक कर देने वालों
चुप्पी साधे क्यों रहते हो कुछ अवसर में ?
जब समाचार में गंग-जमन का राग लगे, तुम
मन्दिर-मस्ज़िद खेल…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:27am — 8 Comments
एक वैचारिक रचना --'' भीड़ ''
********************************
व्यक्तियों के समूह को भीड़ कह लें
अलग अलग मान्यताओं के व्यक्तियों का एक समूह
जो स्वाभाविक भी है
क्योंकि मान्यता व्यक्तिगत है
पर भीड़ विवेक हीन होती है
क्योंकि विवेक सामोहिक नही होता
ये व्यक्तिगत होता है
हाँ , समूह का उद्देश्य एक हो सकता है , पर
प्रश्न ये है कि क्या है वह उद्देश्य ?
भीड़ हाँकी जाती है
भेड़ों की तरह
गरड़िये के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 9:23am — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
.
मेरा ओछा पन भी उनको झूम झूम के गाता है
जिन शेरों में कुत्ता –बिल्ली, हरामजादा आता है
वफा और समझ का मानी एक कहाँ दिखलाता है
रख के टेढ़ी पूँछ भी कुत्ता इसीलिये इतराता है
खोटे दिल वालों की नज़रें, सुनता हूँ झुक जातीं हैं
और कोई बातिल सच्चों में आता है, हकलाता है
वो क्या हमको शर्म- हया के पाठ पढ़ायेंगे यारो
जिनको आईना भी देखे तो वो शर्मा जाता है
सबकी चड्डी फटी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 7:30am — 18 Comments
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |