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Vijay nikore's Blog – July 2014 Archive (3)

थर्राहट ... (विजय निकोर)

थर्राहट

कुछ अजीब-सा एहसास ...

बेपहचाने कोई अनजाने

किसी के पास

इतना पास क्यूँ चला आता है

विश्वास के तथ्यों के तत्वों के पार

जीवन-स्थिति की मिट्टी के ढेर के

चट्टानी कण-कण को तोड़

निपुण मूर्तिकार-सा मिट्टी से मुग्ध

संभावनाओं की कल्पनाओं के परिदृश्य में

दे देता है परिपूर्णता का आभास ...

उस अंजित पल के तारुण्य में

सारा अंबर अपना-सा

स्नेहसिक्त ओंठ नींदों में…

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Added by vijay nikore on July 28, 2014 at 1:30am — 15 Comments

सुपरिष्कृत आस्था .... (विजय निकोर)

सुपरिष्कृत आस्था

 

भर्रायी आवाज़

महीने हो गए जाड़े को गए

क्यूँ इतनी ठिठुरन है आज

आस्था में, सचेतन में मेरे

आंतरिक शोर के ताल के छोर से छोर तक

ठेलती रही है आस्था मुझको, मैं इसको

पर आज बुखार में…

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Added by vijay nikore on July 13, 2014 at 8:00pm — 22 Comments

समय बीतता गया... (विजय निकोर)

समय बीतता गया...

समय की आँधी क्रान्तियात्रा-सी

धुन्धले पड़ते

प्रतीक्षा और मृत्यु के सीमान्त

लड़खड़ाता साहस, विश्वास

ऐसे में स्नेह को आँधी में

दोनों हाथों से लुटा कर

कुछ मिलता है क्या

आत्मपीड़न के सिवा ?

अकेलापन

कसैलापन रसता

बचा रह जाता है

बीतती मुस्कान ओंठों पर

खाली बोतलों के पास

टूटे हुए गिलास-सी पड़ी ...

            -------

-- विजय निकोर

(मौलिक…

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Added by vijay nikore on July 2, 2014 at 8:30am — 24 Comments

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