फूल महकते हैं
वे सिर्फ महकते नहीं
अपितु देते हैं एक संदेश
कि अपने भीतर
आप भी भर लें
इतनी महक
कि आपका अस्तित्व ही
बन जाए परिमल
और वह महकाये पूरे विश्व को
बिना किसी यात्रा या भ्रमण के
और खुद दुनिया भर से लोग
आयें तुम्हारे पास
तुम्हारे सुवास से आकर्षित होकर
तुम्हारे परिमल की
एक गंध पाने को
जैसा टूट पड़ते हैं शलभ
किसी दिए पर
बिना किये अपने प्राणों की परवाह
पर तुम जलाना…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2019 at 8:00pm — 2 Comments
थक गया हूँ
चाहता हूँ
तनिक सा विश्राम ले लूँ
तोड़कर मैं अर्गला
नश्वर वपुष की
किन्तु संकट है विकट
ढूंढें नही मिलता मुझे
इस ठौर पानी
एक चुल्लू साफ़
सिर्फ मरने के लिए
(मौलिक अप्रकाशित)
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 5, 2019 at 6:30pm — 7 Comments
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |