For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – July 2017 Archive (6)

लाठी के सहारे (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"थकना और छकना तो है ही, लेकिन रुकना नहीं है। आगे बढ़ने के लिए यह सब भी करना ही है।" अगले पड़ाव पर बैठ कर वह सोचने लगा।



"पहले अपनी अंदरूनी असली हालत और असली ताक़त पर ग़ौर करो, उसे बरकरार रखने, सुधारने या बढ़ाने की असली कोशिश करो!" अन्तर्मन की आवाज़ ने 'फिर से' उसे झकझोर दिया।



"असली हालत ही तो यह सब करा रही है न! यही असली ताक़त बरकरार रखने या बढ़ाने के लिए निहायत ज़रूरी है!" उसने स्वयं को तसल्ली दी।



"तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारी हालत तो उस तज़ुर्बेकार बूढ़े इंसान… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2017 at 8:03pm — 7 Comments

दुनिया के मर्ज़ (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"भाई, मैंने तो अब सोच लिया है कि अब नहीं रहना संयुक्त परिवार में!"



"अबे, तुम्हारी बीवी की ये पहली प्रेगनेंसी है। कुछ ही महीनों में डिलेवरी होगी। यही तो सही समय है सबके साथ रहने का!"



"साथ रहने में कोई हर्ज़ नहीं, लेकिन हर रोज़ की टोका-टाकी और दकियानूसी से तंग आ चुका हूं। मैं नहीं चाहता कि गर्भ में पल रहे बच्चे को शुरू से ही धार्मिक चीज़ें सुनवाई जायें। रीति-रिवाज़ों की छाप उस पर पड़े!"



"क्या तुम्हारी बीवी भी!"



"कहां यार, वह तो भारतीय नारी है न।!… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 23, 2017 at 10:47am — 13 Comments

बूंद-बूंद ही भरता घड़ा (लघुकथा) ["सुख"-विषयांतर्गत -1]/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

वे दोनों अपने आप को उच्च शिक्षित, व्यवहारिक, और मानवता के पैरोकार साबित करने पर तुले हुए थे। बहस का कोई अंत नहीं था। एक-दूसरे से सहमत होना मुश्किल था। अंतिम प्रयास करते हुए उनमें से एक बोला- "मैंने सभी धार्मिक ग्रंथों के साथ ही मानव समाज से संबंधित सभी विषयों पर पर्याप्त अध्ययन और चिंतन-मनन किया है। निष्कर्षत: अब मैं मानवता के मार्ग पर चलना चाहता हूं।"



"तो क्या अब तक दानव बनकर जी रहे थे!" दूसरे ने लगभग चीखते हुए कहा।



"नहीं, ढोंगी मानवता की चादर ओढ़े हुए दानवता की ढाल लिए… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 16, 2017 at 9:00am — 6 Comments

मम्मी तो ऐसी नहीं न (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कुसुम अपने चाचा-चाची के अपने प्रति बदले हुए रवैये से बहुत हैरान थी। वह अपनी परेशानी किसी को भले ही नहीं बता पा रही थी, लेकिन कुछ दिनों से उसके दादा जी बहुत कुछ समझ रहे थे। जब भी उन्हें समय मिलता, वे उसे कुछ न कुछ समझाने-सिखाने की कोशिश करते रहते थे। इसी क्रम में कुसुम द्वारा रोपित बीज से उगे नन्हे पौधे को गमले में से उखाड़कर उसके हाथों में सौंप कर आज उन्होंने कहा - " कुसुम बिटिया, इस नन्हें पौधे को अब धरती में यहां अपन रोपित कर देंगे और खूब खाद, पानी देकर इसकी सेवा करेंगे, तो फ़िर यह एक बड़ा पेड़… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 15, 2017 at 2:03am — 9 Comments

नई सदी का मर्द (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"देखो तो, कैसा इतरा-इतरा कर नाच रहा है!"

"हाँ, उस मोरनी को देखकर!"

"नहीं, हमें देखकर इतरा रहा है!" सारस ने अपनी टांगों को ज़मीन पर आड़े-तिरछे पटकतेे हुए हंस से कहा।



"बस कुछ ही महीने तो सुंदर दिखता है, फिर भी इंसानों के दिलों में राज करता है!" यह कहते हुए ईर्ष्यालू हँस ने नदी में गोता सा लगाया।



"हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, यह जानते हुए भी!" हंस की बात पर सारस ने कटाक्ष किया।



"आकर्षक तो हम भी हैं, लेकिन न तो हमारा मेकअप इस तरह होता है, न ही हमें ऐसा… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 9, 2017 at 10:50am — 5 Comments

ऐडजस्टमेन्ट्स (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पता नहीं क्यों ज़ुबैर के क़दम कभी पापा के बेडरूम की ओर बढ़ जाते, तो कभी उस कमरे की ओर जहां उसकी मम्मी की सभी चीज़ें कबाड़ की तरह रख दीं गईं थीं। यही तो वे वज़हें हैं जो उसे नाना-नानी के घर से वापस पापा के घर खींच लाती थीं। मंहगाई और कलह के वातावरण में न तो कोई रिश्तेदार उसे ढंग से अपने पास रख पा रहा था, न ही पापा उसे किसी होस्टल में डाल पा रहे थे। पापा को नई मम्मी के साथ ख़ुश देखकर वह ख़ुश हो भी तो कैसे? दो साल पहले उसने अपनी आंखों से देखा था पैसों के ख़र्च के मसले पर बढ़ी बहस में पापा को मम्मी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 8, 2017 at 8:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service