For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – July 2020 Archive (10)

झूलों पर भी रोक लगी -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल )

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



सुनो सखी इस सावन में तो झूलों पर भी रोक लगी

जिससे लगता नेह भरी सब साँसों पर भी रोक लगी।१।

**

घिरघिर बदली कड़क दामिनी मन को हैं उकसाती पर

भरी  उमंगों  से  यौवन  की  पींगों  पर  भी  रोक लगी।२।

**

कितने मास  करोना  का  भय  देगा  कारावास हमें

मिलकर हम सब कैसे गायें गीतों पर भी रोक लगी।३।

**

सूखी तीज  बितायी  सब  ने  कैसी  होगी  राखी रब

कोई कहे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 1:15pm — 8 Comments

भोर का सूरज उजला क्यों है -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

ठूँठ हुआ पर छाँव में अपनी नन्हा पौधा छोड़ गया

कैसे कह दूँ पेड़  मरा  तो  मानव चिन्ता छोड़ गया।१।

**

वैसे तो  था  जेठ  हमेशा  लेकिन  जाने  क्या सूझी

अब के मौसम हिस्से में जो सावन आधा छोड़ गया।२।

**

"दिखे टूटता तो फल देगा", चाहे ये किवँदन्ती पर

आशाओं के कुछ तो बादल टूटा तारा छोड़ गया।३।

**

या रोटी की रही विवशता या सीमा की…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2020 at 12:08pm — 6 Comments

न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये

देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।

**

थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ

स्वार्थ से कोमल ह्रदय  के  खेत ऊसर हो गये।२।

**

न्याय की जब से हुई  हैं कच्ची सारी डोरियाँ

तब से जुर्मोंं के  महावत  और  ऊपर हो गये।३।

**

दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब

पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2020 at 5:30pm — 10 Comments

पनघट के दोहे- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़

उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।

**

जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम

पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।

**

पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल

फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।

**

पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल

कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।

**

पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास

पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।

**

सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल

घर- घर नल…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2020 at 9:59am — 13 Comments

सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२



हम जरूरत के लिए विश्वास जैसे हैं

नाम पर सेवा के लेकिन दास जैसे हैं।१।

**

सेज पर बिछने को होते फूल जैसे पर

वैसे पथ के  पास  उगते  घास जैसे हैं।२।

**

है हमारा मान केवल जेठ जैसा बस

कब  तुम्हारे  वास्ते  मधुमास जैसे हैं।३।

**

दूध लस्सी  धी  दही  कब  रहे तुमको

कोक पेप्सी से बुझे उस प्यास जैसे हैं।४।

**

रोज हमको हो निचोड़ा आपने लेकिन

स्वेद भीगे हर  किसी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 14, 2020 at 10:01am — 10 Comments

तेरे ख्वाहिशों के शह्र में- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२



लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में

आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।

**

सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी

ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।

**

सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ

ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।

**

रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ

करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।

**

चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई

चलना मुझे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments

वर्षा के दोहे -१

नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात

हरियाली  उपहार  में,  देती  है ब रसात।१।

**

हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल

रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।

**

धरती के  दुख  से  हुई, अँधियारी  हर भोर

बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।

**

जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात

सौंधी मिट्टी  की  महक, उठती  है  दिन-रात।४।

**

वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर

बौराए घन  नापते, पलपल  नभ का छोर।५।

**

मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:51pm — 4 Comments

मगर हम स्वेद के गायें - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२ × ४



कहीं पर भूख  पसरी  है  फटे कपड़े पुराने हैं

भला मैं कैसे कह दूँ ये सभी के दिन सुहाने हैं।१।

**

वो गायें गीत फूलों के जिन्हें गजरे सजाने हैं

मगर हम स्वेद के  गायें  हमें पत्थर उठाने हैं।२।

**

पुछें हर आँख से  आँसू  हमारा ध्येय इतना हो

न सोचो चन्द साँसों हित यहाँ सिक्के कमाने हैं।३।

**

बसाना हो तो दुश्मन का बसा दो चाहे पहले पल

पहल अपने से ही  करना  अगर घर ही जलाने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 8:30am — 7 Comments

पीड़ा के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

मन को इतना  दे  गये, अपने  ही अवसाद

नाम पते सड़कें गली, क्या रक्खें अब याद।१।

**

जीवन जिसको रेतघर, बादल क्या दे नीर

उसको तो हर हाल में, मिलनी है बस पीर।२।

**

भूखा बेघर रख रहा, क्या कम यहाँ अभाव

उस पर करता रात - दिन, मँहगाई पथराव।३।

**

थकन बढ़ी है पाँव की, छालों के आसार

मिले कहाँ आराम को, तरुवर छायादार।४।

**

भले उजाले का हुआ, बहुत जगत भर शोर

दीपक नीचे  क्यों  रहा, तमस  भरा घनधोर।५।

**

आँसू अपने  डाल  दो, उस आँचल में और

हर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 7:09pm — 8 Comments

मौत से कह दो न रोके -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

लेके आया फिर से बचपन शायरी का सिलसिला

मौत से कह दो  न  रोके  जिन्दगी का सिलसिला।१।

**

रोक  तेजाबों  घुएँ  की  गन्दगी  का सिलसिला

इन हवाओं में भरो कुछ ताजगी का सिलसिला।२।

**

कोशिशें दस्तक  जो  देंगी  शब्द तोड़ेगे कभी

मौन की गहरी हुई इस तीरगी का सिलसिला।३।

**

हैं बहुत  कानून  अपनी  पोथियों  में  यूँ मगर

रुक न पाया भ्रष्ट होते आदमी का सिलसिला।४।

**

एक जुगनू ने कहा  ये  भर तमस के काल में

डर न तम से मैं रखूँगा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2020 at 12:25pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service