तुम्हारे प्यार की फुहार से
इस कदर भीगा तन-मन, कि,
जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन
झुलसा न सकी…
ContinueAdded by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments
लघुकथा : बहू-बेटी
“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे…
Added by Ravi Prabhakar on August 21, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2011 at 10:46am — 10 Comments
साथियों,
कई मित्रों का प्रश्न है कि "मैं अपने मित्रों को जो जीमेल, याहू , हॉटमेल आदि में है उनको कैसे ओ बी ओ पर आमंत्रित करूँ ?
इसका सरल उपाय ओ बी ओ पर है, मैं चित्र (स्क्रीन शोट) के माध्यम से बताना चाहता हूँ , उम्मीद है प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा, उसके पश्चात् भी यदि कुछ प्रश्न उठ रहे हो तो नीचे कमेंट्स बॉक्स में लिखे ....मैं हूँ ना :-)
…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 20, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on August 14, 2011 at 1:39pm — 16 Comments
Added by satish mapatpuri on August 14, 2011 at 12:00am — 6 Comments
दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक...
संजीव 'सलिल'
*
गले मिले दोहा यमक, झपक लपक बन मीत.
गले भेद के हिम शिखर, दमके श्लेष सुप्रीत..
गले=कंठ, पिघले.
पीने दे रम जान अब, ख़त्म हुआ रमजान.
कल पाऊँ, कल का पता, किसे? सभी अनजान..
रम=शराब, जान=संबोधन, रमजान=एक महीना, कल=शांति, भविष्य.
अ-मन नहीं उन्मन मनुज, गँवा अमन बेचैन.
वमन न चिंता का किया, दमन सहे क्यों चैन??
अ-मन=मन…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 11, 2011 at 10:00am — 7 Comments
मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अंक -१ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
इंसान अगर जीने का मकसद खोज ले तो निराशा स्वत: दम तोड़ देगी. विकास को निराशा के गहरे अँधेरे कुंए में आशा की एक टिमटिमाती रोशनी नज़र आई,उसने मन ही मन सोचा -" क्यों न एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुनर्वास और उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:00am — 5 Comments
मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 1:30am — 6 Comments
बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही, …
Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2011 at 10:30am — 6 Comments
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
दिखलाना कार्पण्य समय से पहले ही मरना है.
मंदिर के निर्माण हेतु चन्दा देना कोई दान नहीं.
हवन -कुण्ड में अन्न जलाना भी है कोई दान नहीं.
निज तर्पण के लिए विप्र को धन देना भी दान नहीं.
ईश्वर-पूजा की संज्ञा दे भोज कराना दान नहीं.
दान नहीं नाना प्रकार से मूर्ति -पूजन करना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.
जो पर…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 5, 2011 at 12:00am — 6 Comments
मुक्तिका:
..... बना दें
संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' साँस को आस-सोहबत बना दें.
जो दिखलाये दर्पण हकीकत बना दें..
जिंदगी दोस्ती को सिखावत बना दें..
मदद गैर की अब इबादत बना दें.
दिलों तक जो जाए वो चिट्ठी लिखाकर.
कभी हो न हासिल, अदावत बना दें..
जुल्मो-सितम हँस के करते रहो तुम.
सनम क्यों न इनको इनायत बना दें?
रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.
भले खार मुश्किल बगावत बना दें..
जो खेतों में करती हैं मेहनत…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 1, 2011 at 11:30am — 4 Comments
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