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विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी's Blog – August 2013 Archive (3)

कर्तव्य बोध (लघुकथा)

खट- खट की आवाज सुनकर गली के कुत्ते भौंकने लगे। चोर कुछ देर शांत हो गये। थोड़ी देर बाद फिर से खोदने लगे। कुत्ते फिर भौंकने लगे।

चोरों ने डंडा मारकर कुत्तों को भगाना चाहा, लेकिन कुत्ते निकले निरा ढीठ, वे और तेज भौंकने लगे। लाल मोहन ही क्या अब तो सारा मुहल्ला जाग चुका था । लेकिन किसी ने अपने बिस्तर से उठकर बाहर यह पता करने की ज़हमत नहीं उठायी कि कुत्ते भौंक क्यों रहे थे ।

सुबह-सुबह पूरे मुहल्ले में यह ख़बर आग बनी थी, लाल मोहन लुट चुका है।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2013 at 8:00am — 20 Comments

आओ लोकतंत्र- लोकतंत्र खेलें (लघुकथा)

अचानक मेरे पांव ठिठक गये। कुछ बच्चे कह रहे थे, आओ लोकतंत्र लोकतंत्र खेलें। मैंने सोंचा- कई खेल सुना है, खेला भी है, मसलन- गिल्ली-डंडा, छुपा- छुपी, कबड्डी, खो- खो आदि। ये नया खेल कौन सा है- लोकतंत्र- लोकतंत्र? मैंने देखा- एक बच्चा जमीन पे लेटा हुआ है, दूसरा बच्चा उसके पास बैठा है। वह रोते हुए कह रहा है- माई- बाप सहाय लागो, मेरा बच्चा भूख से मर रहा है। मैं भी भूख से व्याकुल हूँ। आज मुझे कोई काम नहीं मिला। सहाय लागो माई- बाप सहाय लागो।

एक बच्चा आता है और उसके आगे 24 रूपये फेंक कर कहता है- ले… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 8, 2013 at 8:00pm — 17 Comments

भूख का बीमा (लघुकथा)

रहीम - यार! अपन लोग की लाइफ का कोई गेरन्टी नहीं।
राम - ये सेठ लोग अक्खी दुनिया के हिस्से की गेरन्टी खुद ही ले लेना चाहता है।
-हाँ यार! देख कल अपने सेठ की गाड़ी क्या ठुकी कि बीमा का केस दायर कर दिया। अब साल्ला 4-5 लाख तो मिल ही जायेगा उसको।
-लेकिन तुझे मालूम है? कल अपन के मोहल्ले में अश्फाक मोची का इकलौता लड़का, बेचारा भूख से तड़प कर मर गया।
-काश अपन लोग के भूख भी का बीमा होता यार, तो भूख लगने या मरने पर कुछ तो मिल जाता!

मौलिक व अप्रकाशित

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 7, 2013 at 1:33pm — 31 Comments

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