For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – August 2015 Archive (9)

पास आ, आह्वान करता

फासला, मैं अमान करता।
आप का, अवधान करता।।
हो ख़फ़ा, आख़िर भला क्यों।
मान जा, अविगान करता।।। (अविगान= मतैक्य)

रात्रि सा, छाया तिमिर है।
चन्द्र का, अरमान करता।।

भज रहा, तेरी भजन हिय।
देख ना, गुणगान करता।।

सांस का, है क्या भरोसा।
जान जा, मैं बयान करता।।

प्राण ना, मिलने निकल दे।
पास आ, आह्वान करता।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 31, 2015 at 10:42am — 6 Comments

आज फिर इक सुहागन अभागन हुई

आवरण छोड़ कर तुम चले तो गये, आभरण आज उसका उतारा गया।

आज फिर इक सुहागन अभागन हुई, उसका सिन्दूर धुल के बहाया गया।।  

मयकदे से तुम्हारी लगन क्या लगी, देख ले ना गृहस्थी अगन में जली।

आचरण के असर से भले तुम गये, एक दुल्हन को बेवा बनाया गया।।  

कल्पना से परे चेतना से परे, जाने संसार में कौन से तुम गये।

हे भ्रमर किस सफर पर चले तुम गये, रंग तेरे सुमन का मिटाया गया।।  

कितने संताप आँखों के रस्ते बहे, कितने सपने सुलग कर भशम हो…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2015 at 11:58pm — 7 Comments

खुद को प्रांजल कैसे लिख दूँ

खुद को शुद्ध नहीं कर पाया, तुझ को कश्मल कैसे लिख दूँ।

मन पर पाप का बादल छाया, खुद को निर्मल कैसे लिख दूँ।।



प्रतिपल भजन लोभ के गाऊँ, हर पल स्वार्थ साधना चाहूँ।

लोभ का दमन नहीं कर पाया, खुद को निश्छल कैसे लिख दूँ।।



भ्रम की पर्त चढ़ी है नैन, कटती नहीं कठिन ये रैन।

तिमिर को दूर नहीं कर पाया, आत्मा उज्जवल कैसे लिख दूँ।।



चलता जाता मैं प्रतिदिन, पकड़नें अपना ही प्रतिबिम्ब।

अब तक प्राप्त नहीं कर पाया, खुद को निश्चल कैसे लिख दूँ।।



कण्ठ तक आ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 9:56pm — 10 Comments

बाल श्रमिक (कविता)

हरिया का बेटा हरिलाल

उम्र यही कुछ आठ साल

पढ़ता था तीसरी कक्षा में

आता था प्रथम प्रत्येक साल।।



बापू ने लगा दिया उसको

पास ही के इक भट्ठे पर

भरी जीवन का कुछ बोझा

लाद दिया उसके सर पर।।



वह बालक जिसकी उम्र यही

पढ़ लिख कर कुछ बननें की थी

जिसके जीवन की गिनती

मात्र अभी थी शुरू हुई।।



वह हाथ लिए फरसा झौव्वा

अब नित्य काम पर जाता था

बदले में रोटी की ख़ातिर

कुछ कमा धमा कर लाता था।।



समझाया मैंने हरिया… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 25, 2015 at 9:57pm — 5 Comments

हम भी दबंग हैं, दमदार किसम के

221 122 221 122



एक नए किस्म की- नए प्रयोग वाली ग़ज़ल

=======================================

मुस्कान दिखा के, बे-हाल बना के।

होंठों की लकीरों, का जाल बिछा के।।



यूँ आँख मिला के, जो तीर चलाया।

आया हूँ मैं जाना, दरख्वास्त लिखा के।।



जाओ न ज़रा तुम, जाओगे कहाँ अब।

दीवाने दरोगा, की नींद उड़ा के।।



संगीन दफ़ा है, चालान करेंगे।

करना है हवाले, तुमको वफ़ा के।।



तुम्हें प्रेम पाश में, गिरफ्तार करेंगे।

हम भी दबंग हैं, दमदार… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 11:30am — 13 Comments

होश खोने की तलब है और मयखाना वहाँ

होश खोने की तलब है और मयखाना वहाँ।

है असम्भव आदतों को छोड़ दे पाना यहाँ।।



किस तरह तन्हा गुज़ारें ज़िंदगी का ये सफ़र।

नींद आँखों में नहीं कैसे हो सो जाना यहाँ।।



राह सुनी ही रही अब तक निगाहें हैं खुली।

आज भी हासिल रहा उनका नहीं आना यहाँ।।



चैन का आलम न पूछें नब्ज़ में तूफ़ान है।

है कठिन बरसात के मौसम को रुकवाना यहाँ।।



हसरतों की नाव सागर के हवाले छोड़ना।

एक मांझी की ख़ता मुश्किल है बतलाना यहाँ।।



कोई उनको बोलिये नैनों के सागर के… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2015 at 11:30am — 13 Comments

हम "पत्थर" भी पूजे जाते

आ जाते इक बार अगर जो

तुम हमको भी चूमे जाते।

कई शिलाएं देव हुई हैं

हम "पत्थर" भी पूजे जाते।।



राहों में बेजान पड़े हैं

अपनी गति को ढूंढ रहे हैं।

कभी इधर तो कभी उधर को

राहों में बस घूम रहे हैं।।



अपने सुर्ख गुलाबी वाले

मुझमें रंग जो भरके जाते।

कई शिलाएं देव हुई हैं

हम "पत्थर" भी पूजे जाते।।1।।



ये तन है पर प्राण नहीं है

सांस का कुछ भी पता नहीं है।

दिल तो है पर शांत बहुत है

जीवित हूँ यह एक भ्रान्ति… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 10:06pm — 15 Comments

बहुत ज़रूरी है

तेरी आँखों की पलकों का, उठना बहुत ज़रूरी है।

इस चेहरे पर प्रेम पत्र है, पढना बहुत ज़रूरी है।।



कितनें सपनें इन आँखों नें, बुन रक्खे हैं तेरे लिए।

इन आँखों का हर इक पन्ना, खुलना बहुत ज़रूरी है।।



इस सीनें में जो इक दिल है, सरगम कोई सुनाता है।

धड़कन की इस मधुर राग को, सुनना बहुत ज़रूरी है।।



मेरे अधरों पर सदियों की, प्यास नें रेखाएं खींची हैं।

मधु सिंचन कर रेखाओं का, मिटना बहुत ज़रूरी है।।



इस बस्ती का घना अँधेरा, अपने चाँद को ढूंढ रहा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 7:27pm — 11 Comments

सकल धरा पर तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ

जितनी सुन्दर तुम हो उतने, सुंदर सुंदर छन्द लिखूँ।

जी करता है सकल धरा पर, तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ ।।



झुकी निगाहें बिखरे गेसू, मन का मौसम सरस हुआ।

जी करता बस देखूँ देखूँ, तेरी छवि का दरश हुआ।।



रिमझिम बरस रहे सावन की, शीतल शीतल बूँद लिखूँ।

जी करता है सकल धरा पर, तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ।।1।।



टपक रहीं बालों से बूँदें, धुली हुई इक पुष्पलता सी।

खुले अधर पर ठहरी बूँदें, जगी अभीप्सा यहाँ ख़ता की।।



बेसुध कर दे मन को पल में, ऐसी तुझे सुगंध… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 15, 2015 at 11:24am — 10 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
5 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
23 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
23 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service