किसने कहा ? आप स्वतंत्र नही हैं
आप तो स्वभाव से स्वतंत्र हैं
और पहले भी थे , सदा से थे ।
जैसे आप स्वतंत्र हैं
हाथ घुमाने के लिये
तब तक , जब तक कि ,
किसी का चेहरा न सामने आये ।
मुश्किल तो यही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 30, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
2122 2122 2122
पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से
क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से
मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल
हर किसी को पूछना है तिश्नगी से
इस क़दर तारीक़ियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2013 at 9:00pm — 36 Comments
2122 2122 2122 2122
******************************************
क्या हवायें आज कुछ पैग़ाम ले के आ रही है
धूप भी कुछ गा रही है, छाँव भी इतरा रही है
बेख़याली मे कहीं हम हद के बाहर तो नहीं है
आदमीयत आज बैठी क्यूँ यहां शर्मा रही…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 6:00pm — 36 Comments
अंतस मे उमड़ती भावनायें,
उचित शब्द टटोलते,
शब्द कोशों को पार कर,
निष्फल प्रयासों से हार कर,
अंततः आवारा हो गईं !
और फिर आँखों के रास्ते ,
अश्रु बून्द के रूप में,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 20, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on August 19, 2013 at 9:00am — 14 Comments
मै शब्द हूँ ।
मेरा जन्म हुआ है आप का अंतस बाहर लाने के लिए ।
मै उतना ही सशक्त होता हूँ, जितनी आप की भावनाएं…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 18, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
अंतर मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 10:30pm — 18 Comments
गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
***************************************
दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना
क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना
खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments
गीत
*********
मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ
मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ
तुम नृप के भी हो नृपराज
पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी
मै हूँ अमा की काली रात …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments
जब अन्धियारा संग संग है,
सब रंगों का एक रंग है।
एक लड़ाई है बाहर तो,
ख़ुद के अन्दर एक जंग है।
शहरों की गलियों से जादा,
गली दिलों की और तंग है।
कुछ करने की चाहत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 11, 2013 at 8:00am — 7 Comments
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |