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Khursheed khairadi's Blog – August 2017 Archive (1)

प्रेम पचीसी(दोहे)

प्रीत-पगे दोहे (प्रेम-पचीसी)

मुझको मुझसे छीनकर, बनते हो अनजान ।

निर्मोही तुमको कहूँ, या समझूँ नादान ।। ... 1



झरना साजन तुम भए, मैं जन्मों की प्यास ।

पीकर भी प्यासी मरुँ, रहता कंठ उदास ।। ... 2



प्रीत छुपाऊँ किस तरह, कैसे ढाँकूँ लाज ।

फूलों से छुपता नहीं, काँटों का यह ताज ।। ... 3



तुम सावन के मेघ हो, मैं मरुधर की रेत ।

जा बरसे हो बाग़ में, कैसे पनपे हेत ।। ... 4



संग तुम्हारे जो कटा, वो पल है अनमोल ।

तुम बिन सूना जो रहा, वो… Continue

Added by khursheed khairadi on August 31, 2017 at 11:45am — 5 Comments

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