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Surender insan's Blog – August 2017 Archive (2)

ग़ज़ल " जिंदगी से जी भर गया कब का "

2122 1212 22

ज़िन्दगी,जी तो भर गया कब का।
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।

***
इक मुहब्बत का था नशा मुझको।
वो नशा भी उतर गया कब का।।
***
चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।

***
देख हालत नशे के मारों की।
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।

***
देख कर छल फ़रेब दुनिया के।
एक "इंसान" मर गया कब का।।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by surender insan on August 9, 2017 at 5:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल "दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है"

1222 1222 122

दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है।

फ़क़त बातों से कुछ होता नहीं है।।



***

बुरा अंजाम होता है बुरे का।

ख़ुदा से कुछ भी तो छुपता नहीं है।।



***

कई धोख़े मिले हैं जिंदगी में।

किसी पर अब यकीं होता नहीं है।।



***

मुहब्बत में मुझे इक बेवफा ने।

दिया वो जख़्म जो भरता नहीं है।।



***

यकीं कोई न अब उस पर करेगा।

वो अपनी बात पर टिकता नहीं है।।



***

उसे है याद बातें सब पुरानी।

मगर अब गाँव वो… Continue

Added by surender insan on August 3, 2017 at 9:54am — 21 Comments

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