आदमी खुद को बनाता आदमी है आदतन
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आदमी में जानवर भी जी रहा है फ़ित्रतन
आदमी में आदमी को देखना है इक चलन
साजिशें रचतीं रहीं हैं चुपके चुपके बदलियाँ
सूर्य को ढकना कभी मुमकिन हुआ क्या दफअतन ?
पर ज़रा तो खोलने का वक़्त दे, ऐ वक़्त तू
फिर मेरी परवाज़ होगी और ये नीला गगन
बाज, चुहिया खा …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 4:30pm — 28 Comments
२१२२ २१२२ २1२२
जब भी सागर बनने इक दरिया चला है
पत्थरों को राह के हरदम खला है
जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने
आज जलवे देख हाथों को मला है
यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में
बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला है
अपने ही हाथों से रोका था हवा को
तब कहीं ये दीप आंधी में जला है
दोस्तों जिस को गले हमने लगाया
बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
मौत का सघन साया
अनुभूति बनकर आया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
यह आत्मीयता प्रदर्शन
करुणा का कलित क्रंदन
चीत्कार आर्त्त रोदन
या नाट्य अभिनय मंचन
.
इसे देख जी में आया
छोडूं न अभी काया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
सर्वांग व्यथित परिजन
सूने उदास से मन
इतना असीम कम्पन
तब था न जब था जीवन
.
यह मोह है या माया
कुछ कुछ समझ में आया
मेरे अंतिम क्षणों में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 10, 2014 at 1:30pm — 23 Comments
आसमानी फ़ासले
बच्चों-सा स्वप्निल स्वाभाविक संवाद
हमारी बातों में मिठास की आभाएँ
ताज़े फूलों की खुशबू-सी निखरती
सुखद अनुभवों की छवियाँ ...
हो चुकीं इतिहास
समय-असमय अब अप्रभाषित
शून्य-सा मुझको लघु-अल्प बनाती
अस्तित्व को अनस्तित्व करती
निज अहं को आदतन संवारती
आलोचनाशील असंवेदनशीलता तुम्हारी
अब बातें हमारी टूटी कटी-कटी ...
बीते दिनों की स्मर्तियाँ पसार
मानवीय…
ContinueAdded by vijay nikore on September 7, 2014 at 2:00pm — 21 Comments
हैं अनेकों धर्म भाषा, ...एक हिंदुस्तान है l
मातृभाषा हिन्द की, हिंदी हमारी जान है ll
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देश की संस्कृति रिवाजों पर हमें भी गर्व हो l
भारती की शान हिंदी, . विश्व में पहचान है ll
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नृत्य शंभू ने किया, डमरू बजा, ॐ नाद का l
देववाणी के सृजन से ..विश्व का कल्यान है ll
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पाणिनी ने दी व्यवस्था व्याकरण की विश्व को l
हम सनातन छंद रचते ...गीत लय मय गान है ll
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सूर तुलसी जायसी, ......भूषण कवि केशव हुए l
चंद मीरा पन्त दिनकर, काव्य मय…
Added by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
संस्कृत बृज अवधी
से सुवासित,
मैं हिंदी हूँ हिन्द
की शान।
बीते सात दशक
आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।
दुनियाँ के सारे
देशों में,
मातृभाषा का प्रथम
स्थान।
उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी
सबको,
आत्मसात कर दिया
है मान।
हिंदी दिवस मनाता
अब भी,
मेरा लाडला हिन्दुस्तान
बीते सात दशक......
मैं हूँ स्वामिनी अपने
घर की,
भाषा पराई करती
राज।
लज्जा आती मुझे
बोलकर,
इंगलिश…
Added by seemahari sharma on September 2, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
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