ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,
माफ़ करना अगर खता की है |
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,
मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |
फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,
खुशबुओं की तलाश बाकी है |
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है |
एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,
आईनों ने ये इत्तिला…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:30am — 46 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
इल्म की रोशनी नहीं होती ,
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |
एक कोना दिया है बच्चों ने ,
और कुछ बेबसी नहीं होती |
रंग आये कि सेवई आये ,
तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |
दिल के टूटे से शोर होता है ,
ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती |
माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,
बाप से बंदगी नहीं होती…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:30am — 44 Comments
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