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Dr.Prachi Singh's Blog – September 2012 Archive (5)

खामोश आखर..

 

मूक रूदन
सहमे लब, खामोश आखर..
हृदय क्रंदित 
सूखी मरू सम, नयन गागर..
रिक्ततामय
शून्य विस्तृत, श्याम सागर..
क्षुद्र लोभन 
डाह विषमय, मनस अंतर..
नव्य चेतन 
सृजन स्नेहिल, बरसे जलधर..
स्वर्ण सम फिर 
दिव्य दमके, पूर्ण भूधर..

Added by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 8:00pm — 20 Comments

मन क्षेत्र - आकाश सा विस्तृत

मन क्षेत्र  

आकाश सा विस्तृत... 

आकांक्षाओं के बिंब ,

बन 

भाव-बादल,  

करते 

कभी आहलादित  

कभी विकृत  

संपूर्ण अस्तित्व... 

बदल बदल स्वरूप 

बादल सम चंचल  

अस्…

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Added by Dr.Prachi Singh on September 21, 2012 at 4:40pm — 8 Comments

क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?

आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
हो निराश क्यों विस्मित मन, तक आशा की यह डोर रहे?
*
मैं खुद बेबस पंछी हूँ,
नाज़ुक पर, कैद सलाखों में,
आखिर क्या विश्वास जगा,
पाऊँगी बेबस आँखों में ?…
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Added by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 11:30am — 19 Comments

सद्गुरु त्रिगुणातीत (दोहावली )



सत् रज तम गुण से परे, सद्गुरु त्रिगुणातीत l
तुर्यावस्था लीन जो, लीला उनकी रीत ll1ll
**************************************************
गुरुवर दो ऐसी कृपा, पा जाएँ निज ज्ञान l
प्रेम समंदर उर बहे, तनिक न हो अभिमान ll2ll…
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Added by Dr.Prachi Singh on September 11, 2012 at 6:00pm — 21 Comments

साँचा विद्वान (दोहावली )

प्रेम कसूरी उर बसै, वन उपवन मत भाग ,

मृग दृग अन्तः ओर कर, महक उठेंगे भाग ll1ll

**************************************************

आत्मान्वेषण है सहज, यही मुक्ति का द्वार,

बाहर खोजे जग मुआ, भीतर सच संसार ll2ll

**************************************************

पूरक रेचक साध कर, जो कुम्भक ठहराय ,

द्विजता तज अद्वैत की, सीढ़ी वो चढ़ जाय ll3ll

*************************************************

वर्तमान ही सत्य है, शाश्वत इसके पाँव ,

नित्यवान के शीश पर, वक्त…

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Added by Dr.Prachi Singh on September 2, 2012 at 7:00pm — 14 Comments

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