2122 2122 2122 212
भूख से मरता रहा सारा ज़माना इक तरफ़ ।
और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़ ।।
बस्तियों को आग से जब भी बचाने मैं चला ।
जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ।।
कुछ नज़ाक़त कुछ मुहब्बत और कुछ रुस्वाइयाँ ।
वह बनाता ही रहा दिल में ठिकाना इक तरफ ।।
ग्रन्थ फीके पड़ गए फीका लगा सारा सुखन ।
हो गया मशहूर जब तेरा फ़साना इक तरफ ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on September 28, 2018 at 12:00pm — 8 Comments
सोचिये मत यहाँ ख़ता क्या है ।
है इशारा तो पूछना क्या है ।।
अब मुक़द्दर पे छोड़ दे सब कुछ ।
सामने और रास्ता क्या है ।।
वो किसी और का हो जाएगा ।
बारहा उसको देखता क्या है ।।
गर है जाने की ज़िद तो जा तू भी ।
अब तेरा हमसे वास्ता क्या है ।।
इतना …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on September 25, 2018 at 3:16am — 12 Comments
इक ज़माने से गुलिस्ताँ में है बहार कहाँ ।
जान करता है गुलों पर कोई निसार कहाँ ।।
बारहा पूछ न मुझसे मेरी कहानी तू ।
अब तुझे मेरी सदाक़त पे ऐतबार कहाँ ।।
एक मुद्दत से कज़ा का हूँ मुन्तजिर साहब ।
मौत पर मेरा अभी तक है इख़्तियार कहाँ ।।
आपकी थी ये बड़ी भूल मान जाते हम ।
दिख रहे आप…
Added by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2018 at 12:20am — 7 Comments
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