नख-दंत के संसार में गुम
ढूंढता निज मर्म हूँ मैं
ये रूचिर
रूपक तुम्हारे
गुंबजों की
पीढि़यां
दंगों के
फूलों से चटकी
कुछ आरती,
कुछ सीढि़यां
थुथकार की सीली धरा पर
सूखता गुण-धर्म हूँ मैं
रंगों की
थोड़ी समझ है
कृष्ण तक तो
श्वेत था
आह्लाद के
परिपाक में भी
एकसर
समवेत था
युगबोध पर कहता मुझे है
कि नहीं यति-धर्म हूँ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 1:29pm — 24 Comments
तुमको देखे
बरसों बीते
सूखे फूल
किताबों में
अहिवाती बस
एक छुअन ही
रही महकती
हाथों में
मन के कोरे
काग़ज भी तो
क्षत को गिरे
प्रपातों में
अनगिन पारिजात
मगर तुम
रख गए
कलम-दावातों में
आओ ना
इस इंद्रधनुष पर
दो पल बैठें
बात करें
शावक जैसी
कोमल राते
उतर रही
आहातों में
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 1:06pm — 16 Comments
स्वाति सी कोई कथा-कहानी
चातक का इक शहर, लिखो ना
कसमस करती
इक अंगड़ाई
गुनगुन गाता
भ्रमर, लिखो ना
चैताली वो रात सुहानी
शारद-शारद
डगर, लिखो ना
किसी कास की शुभ्र हँसी में
होती कैसी लहर, लिखो ना
इक देहाती
कोई दुपहरी
पीपल की
कुछ सरर, लिखो ना
शीशे सा वो
थिरा-थिरा जल
अनमुन बहती
नहर, लिखो ना
पारिजात की भीनी खुशबू
धिमिद धिमिद वो…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 6, 2013 at 11:33am — 18 Comments
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