2122 2122 2122 212
कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं
हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 8:30pm — 38 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 5:30pm — 26 Comments
212 212 212 212
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छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा
दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा
सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही
दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा
ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम
बढ़ गया पाप जब तो कोई धो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 12:00pm — 38 Comments
2122 2122 2122 212
अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में
क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में
कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में
कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 18, 2013 at 7:00pm — 40 Comments
2122 2122 2122 212
भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही
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तेज़ से भी छटपटाहट तेज़ जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 11:30am — 25 Comments
2122 1212 22
कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है
जख़्म लेकिन, कही हरा भी है
जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर
प्यार से दिल मेरा भरा भी है
ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा
थक के हारा,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 10:00pm — 35 Comments
2122 1212 22
धूप हमको निचोड़ देती है ,
ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।
पत्तियों को बड़ी शिकायत है,
ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।
चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,
जाने क्यूँ राह मोड़…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 7:00am — 19 Comments
नव गीत
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आ चल फिर बच्चे हो जायें
खेलें कूदे मौज मनायें
बिन कारण ही,
रोयें गायें , हँसे हँसायें,
आ चल फिर बच्चे हो जायें !
मेरी कमीज़ है गन्दी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 4, 2013 at 6:00pm — 30 Comments
पांच दोहे
खुद के अन्दर झाँक के, पढ़ ले तू आलेख
अपने ऐसे हाल का, खुद खींचा आरेख
बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास
भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास
पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 6:00pm — 42 Comments
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