यदि मैं आज हूँ
आज के बाद भी हूँ मैं
तो वह अवश्य होगा।
यदि जीवन की गूँज
जीने की अभिलाषा
लय भरा संगीत है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि उसमें नदी का
कलकल नाद है
पंखियों का कलरव है
कोयल का कलघोष है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि हम उत्तराधिकारी हैं
हमसे वंशावली है
हम योग का एक अंश हैं, तो
वह अवश्य होगा।
ब्रह्माण्ड की धधकती आग से
निकल कर शब्द ब्रह्म का
निनाद यदि है, तो
वह…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 24, 2014 at 8:24pm — 1 Comment
1- शत्रु के सत्रह हार
काम1, क्रोध2, मद3, लोभ4, मोह5,
मत्सर6, रिपु के संचार।
द्वेष7, असत्य8, असंयम9, गल्प10,
प्रपंच11, करे संहार12।
स्तेय13, स्वार्थ14, उत्कोच15, प्रवंचना16,
विषधर अहंकार17।
जो धारें ये अवगुण सारे
सत्रहों हैं शत्रु…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 23, 2014 at 10:01pm — 5 Comments
1-
संस्कार होंगे
राम राज्य के स्वप्न
साकार होंगे !
2-
बेच ज़मीर
बनता है तब ही
कोई अमीर !
3-
स्वतंत्र हुए
बगल के नासूर
हैं पाले हुए !
4-
है नारी वो क्या
न सिर पे पल्लू न
आँखों में हया !
5-
क्या नाजायज
सत्ता, युद्ध, प्रेम में
सब जायज !
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 14, 2014 at 10:51pm — 4 Comments
शहरों की भीड़ भाड़ में
बस आदमी ही आदमी।
चलता ही जा रहा है
थकता नहीं है आदमी।
वाहनों की दौड़ भाग से
नहीं इसे परहेज
न है इसे प्रतिद्वंद्विता
न द्वेष रखता है सहेज
इसका तो अपना ध्येय है
पीढ़ियों से अपराजेय है
फिर भी देवताओं सा
लगता नहीं है आदमी।
इसकी अभिलाषाओं का
अभी न अंत होना है
अभी न तृप्त होगा यह
अभी न संत होना है
अभी इसे विकास के
सोपानों पर चढ़ना है…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 10, 2014 at 9:40am — 1 Comment
भाईचारा बढ़े संग हम सब त्योहार मनायें।
इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।
क्यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।
क्यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।
पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्कृति की युगों युगों से,
आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।
भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।
भाईचारा बढ़े---------------
दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।
हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 6, 2014 at 12:23pm — 2 Comments
1-
मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।
वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।
बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।
कितनी है परवाज, तभी संकेत मिलेगा।
आए वैसा दौर, अब हिन्दी की क्रांति से।
आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 4, 2014 at 3:00pm — No Comments
जन निनाद से ही
मंजिल तय हो
निश्चय ही।
विश्वभाषाओं संग हो
हिंदी निश्चय ही।
हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित
पर्व मनायें
अब समवेत स्वरों में
गौरवगाथा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 8:41am — 6 Comments
विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।
विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।
वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 1, 2014 at 3:00pm — No Comments
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