221 2121 1221 212
कश्ती में है मगर नहीं पतवार हाथ में.
होता कहाँ किसी के ये संसार हाथ में.
कर लो भला गरीब का कुर्सी पे बैठकर,
तुमको मिला है भाग्य से अधिकार हाथ में.
ईश्वर की चाह है तो अकेले भजन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 19, 2020 at 6:00pm — No Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२
ज़िंदगी अच्छी तरह अब कट रही है,
आजकल खुद से हमारी पट रही है.
लूट कर वो ले गई है दिल हमारा,
झूलती रुखसार पर जो लट रही है.
हाल पूछा जो हमारा आज उसने, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 11, 2020 at 5:00pm — 9 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
है जिनके हाथों में सत्ता.
उनका हर दिन बढ़ता भत्ता.
छोड़ दिया जिसको डाली ने,
इधर-उधर उड़ता वह पत्ता.
कीमत भारी होनी ही थी,
था पुस्तक पर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 3:30pm — 12 Comments
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