For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – September 2016 Archive (12)

ख़्वाबों की लहद ....

ख़्वाबों की लहद ....

ये आंखें

न जाने कितने चेहरे

हर पल जीती हैं

हर चेहरे के

हज़ारों ग़म पीती हैं

मुस्कुराती हैं तो

ख़बर नहीं होती

मगर बरस कर

ये सफर को अंजाम

दे जाती हैं

ज़हन की मिट्टी को

किसी दर्द का

पैग़ाम दे जाती हैं

मेरी तन्हाईयों को

नापते -नापते

न जाने कितने आफ़ताब लौट गए

मेरी तारीकियों में

हर शरर ने

अपना वज़ूद खोया है

हर लम्हा

किसी न किसी लम्हे के लिए

वक्त की चौखट से…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 30, 2016 at 3:24pm — 14 Comments

पुरानी किताबें ....

पुरानी किताबें ........

पुरानी किताबें

कुछ भी तो नहीं

सिवाय पुरानी कब्रों के

जिनमें दफ़्न हैं

चंद सूखे गुलाब

कुछ सिसकते हुए

मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़

कुछ पुराने पीले

टुकड़े टुकड़े से

अधूरे प्रेम के

प्रेम पत्र

पुरानी किताबें

जिनमें सो गयी

जीने की आस लिए

कई आकांक्षाएं

घुटी हुई सांसें

मोटी सी ज़िल्द की

अलमारी में

कैदियों से जीते

मौन कई अफ़साने

जंज़ीरों में…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm — 12 Comments

एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

लड़ते-लड़ते

धरा की गोद में

लहुलुहान

कोई सो गया

तिरंगे में

लिपटा हुआ

फिर एक तन

एक वतन

हो गया

... ... ... ... ... ... ... ... ...

2. शेष ....



गोली

बारूद

धमाके

लाशें

चीखें

धुऐं की गर्द

बस

हदों के झगड़ों का

यही था

शेष

... ... ... ... ... ... ... ... ... ...

3. हल ....



लिपट गया

तिरंगे में

भारत माँ का

एक लाल…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 8:21pm — 2 Comments

बहुत याद आऊंगा ....

बहुत याद आऊंगा ....

रोज की तरह

आज भी भानु रश्मियों ने

एक नये जोश के साथ

धरती पर अपने

पाँव पसारे

चिडियों की चहचहाट ने

वातावरण को अपनी मधुर ध्वनि से

अलंकृत कर दिया

साइकिल की घंटी बजाता दूधवाला

घर घर दूध की आवाज देने लगा

सड़क पर सफाई वालों ने भी

अपना मोर्चा सम्भाल लिया

ये सारा नजारा

मैं अपनी युवा काल से

आज तक

इसी तरह देखता हूँ

आज मैं

अपने बदन पर

चंद पतियों के साथ

सड़क के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 3:16pm — 2 Comments

कमलनयनी ब्रांड .... ...

कमलनयनी ब्रांड .... ...

अरे!

ये क्या हुआ

कल ही तो वर्कशाप में

ठीक करवाया था

टेस्ट ड्राईव भी

करवाई थी

कार्य प्रणाली

बिलकुल ठीक पाई थी

माना

टक्कर बहुत भारी थी

दिल के

कई टुकड़े हो गए थे

पर वर्कशाप में

कमलनयनी ब्रांड के

नयनों के फैविकोल से

टूटे दिल के टुकड़े

अच्छी तरह चिपकाए थे

उसकी मधुर मुस्कान ने

ओके किया था

दिल फिर अपने

मूल रूप में

धड़कने लगा था

गज़ब

ठीक होते ही

वर्कशाप के मेकैनिक…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 1:30pm — 6 Comments

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

१.

ठहर जाती है

ज़िदंगी

जब

लंबी हो जाती है

अपने से

अपनी

परछाईं

...... .... .... .... ....

२.

एक सिंदूर

क्या रूठा

ज़िन्दगी

बेनूरी हो गयी

इक नज़र

क्या बन्द हुई

हर नज़र

सिंदूरी हो गयी

..... ..... ..... ..... ..... ....

३.

ज़ख्म

भर जाते हैं

समय के साथ

शेष

रह जाते हैं

अवशेष

घरौंदों में

स्मृतियों के

इक अनबोली

टीस के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

ढलक गया .... (क्षणिकाएं )

१.

बंद था

एक लम्हा

पलकों की मुट्ठी में

सह न सका

दस्तक

याद की

और

ढलक गया

हौले से

.... ... ... ... ... ...

२.

था

एक ख़्वाब

जो

हकीकत से पहले

जाने कब

हकीकत में

ख्वाब हो गया

.... .... .... .... .... ....

३.

वो

ज़िदंगी का

बीता कल था

जिया मरके

जिसमें

वो सुहाना पल था

वो पल

सुख का

रूह से 

बतियाता रहा

मारने के बाद…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 13, 2016 at 4:39pm — 12 Comments

तुम मुझे मिल जाओगे ...

तुम मुझे मिल जाओगे ...

ये सृष्टि

इतनी बड़ी भी नहीं

कि तुम मेरी दृष्टि की

दृश्यता से

ओझल हो जाओ

असंख्य मकरंदों की महक भी

तुम्हारी महक को

नहीं मिटा सकती

तुम मेरी स्मृति की

गहन कंदरा में

किसी कस्तूरी गन्ध से समाये हो



सच कहती हूँ

तुम मेरे रूहानी अहसासों की

हदों को तोड़ न पाओगे

क्यूँ असंभव को

संभव बनाने का

प्रयास करते हो

अपने अस्तित्व का

मेरे अस्तित्व से

इंकार…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 12, 2016 at 4:58pm — 4 Comments

रिश्तों को समझ जाएगी ...

रिश्तों को समझ जाएगी ...



न आवाज़ हुई

न किसी ने कुछ महसूस किया

इक जलजला आया

इक सूखा पत्ता

दरख़्त से गिरा

और बेनूर हुआ

इक आदि का

अंत हुआ

सीने में ही घुट गया

किसी अपने के खोने का दर्द

हरी कोपल हँसी

जीवन के इस खेल का

ए दरख़्त

अफ़सोस कैसा ?

नमनाक नज़रों से

दरख़्त

आरम्भ को देखता रहा

गिरते हुए पत्तों में

रिश्तों का अंत

देखता रहा

वो अंश था मेरा

जो इस तन से

टूट…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 1:30pm — 8 Comments

मृत्यु फिर जीत गयी .....

मृत्यु फिर जीत गयी .......

लम्हे यादों के 

बढ़ती शब् के साथ

पिघलते रहे

मेरे अहसास

लफ़्ज़ों के पैरहन में

गूंगे बन

सिरहाने रखीं किताब में

पिघलते रहे

दीवारों पर

छाई शून्यता की काई में

ये नज़रें

किसी के बहते लावे के साथ

पिघलती रही

मैं और तुम

का अस्तित्व

पिघलकर

एक हुआ

ज़िस्म केज़िंदाँ में

अनबोले लम्स

पिघलते रहे

ज़िस्म मिटे

साये…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 4:00pm — 12 Comments

तन्हा रह जाता है ....

तन्हा रह जाता है ....

कल की तरह

ये आज भी गुजर जाएगा

स्मृतियों की कोठरी में

फिर कुछ और पल समेट जाएगा

हर कल के साथ

अपने अस्तित्व की शिला से

अपने अमिट होने का

दम्भ को पुष्ट करता रहेगा

हर कल का सूरज

अस्त्तित्वहीन होकर

किसी कल के गर्भ में

लुप्त हो जाएगा

क्या है जीवन

वो

जो गुजर गया

या वो

जो आज है

या फिर वो

जो आने वाले

काल के गर्भ में

सांसें ले रहा है

हर रोज़

इक मैं जन्म लेता…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 2, 2016 at 9:05pm — 6 Comments

रिश्तों के सीनों में ......

रिश्तों के सीनों में ......

कितनी सीलन है

रिश्तों की इन क़बाओं में

सिसकियाँ

अपने दर्द के साथ

बेनूर बियाबाँ में

कहकहों के लिबासों में

रक़्स करती हैं

न जाने

कितने समझौतों के पैबंदों से

सांसें अपने तन को सजाये

जीने की

नाकाम कोशिश करती हैं

ये कैसी लहद है

जहां रिश्ते

ज़िस्म के साथ

ज़मीदोज़ होकर भी

धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ

अपने ज़िन्दा होने का

अहसास…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 1, 2016 at 9:30pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service