For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr.Prachi Singh's Blog – October 2017 Archive (3)

दीप जला क्या // डॉ० प्राची

कभी रौशनी से टकराकर

बोल निशा तेरी चौखट पर

दीप जला क्या ?



प्रश्न पूछतीं तेरी भूरी-भूरी आँखे भोली-भाली,

क्या उत्तर दूँ क्या समझेगी

किसने घोली तेरे हर दिन में उगने से पहले ही

इन रातों जैसी स्याही काली...



सिर्फ़ ज़रूरी बात यही है-

तेरी पलकों में जुगनू बन

स्वप्न पला क्या ?



जटा-जटा बन छितर-बितर ये बाल धूल से मैले-मैले

नन्हे हाथों से पीछे कर

बीन-बान कर दीप, माँग कर इधर-उधर से थोड़ी उतरन

भर लाई घर कितने… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 19, 2017 at 2:40pm — 8 Comments

वक़्त के संग कुछ बदल // डॉ० प्राची

तारतम्यों के भँवर में

क्या उम्मीदें कर रहा है?

बावरे अब तो सम्हल जा

वक्त के संग कुछ बदल...



क्यों ठगा सा तू खड़ा है भावनाओं को लिये

बाँचता है क्यों भला वो अश्रु जो तूने पिये,

रख अगर उम्मीद रखनी है स्वयं से खूब रख

तृप्ति की जो बूँद निस्सृत हो हृदय से खूब चख,



आज के परिपेक्ष्य में अपनत्व

की संभावना को,

खोजना क्या है उचित?

रे मूर्ख! जाएगा फिसल...



सिर्फ बातों के लिए सबने सभी बातें कहीं

अर्थ उनमे खोजता क्यों अब तलक अटका… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 17, 2017 at 1:07pm — 8 Comments

अम्बर के विस्तार सरीखे मेरे पापा // डॉ० प्राची

शुचित यज्ञ सी

मन प्राणों में घोल सुगन्धि,

आँगन में त्यौहार सरीखे मेरे पापा...



थाम अँगुलियाँ जिनकी

हर उलझी पगडण्डी लगी सरल सी,

ज़मी किरचियाँ व्यवहारों की

पिघल हृदय से बहीं तरल सी,



सबकी ख़ातिर बोए पग-पग

गुलमोहर और छाँटे कीकर,

सौंपी सबको ख़ुशियों की प्याली

ख़ुद पी हर व्यथा गरल सी,



फिर भी…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on October 10, 2017 at 9:30pm — 7 Comments

Monthly Archives

2022

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service