Added by Dr.Prachi Singh on October 19, 2017 at 2:40pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on October 17, 2017 at 1:07pm — 8 Comments
शुचित यज्ञ सी
मन प्राणों में घोल सुगन्धि,
आँगन में त्यौहार सरीखे मेरे पापा...
थाम अँगुलियाँ जिनकी
हर उलझी पगडण्डी लगी सरल सी,
ज़मी किरचियाँ व्यवहारों की
पिघल हृदय से बहीं तरल सी,
सबकी ख़ातिर बोए पग-पग
गुलमोहर और छाँटे कीकर,
सौंपी सबको ख़ुशियों की प्याली
ख़ुद पी हर व्यथा गरल सी,
फिर भी…
Added by Dr.Prachi Singh on October 10, 2017 at 9:30pm — 7 Comments
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