आग लगाकर इक पुतले को परचम लहराएगी जनता
असली रावण मंच विराजित जय कारे गायेंगी जनता
दस शीशों से पहचाना था जिस रावण को पुरसोत्तम ने
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
कुम्भकरण भर पेट पड़े हैं इन्द्रप्रस्थ के दरबारों में
भांति भांति के इन्द्रजीत हैं गली गली में चौबारों में
चोरों की चौपाल जहाँ हो वहां भला क्या होगी समता
कल युग में बस एक शीश से कैसे पहचानेगी जनता ?
दूषित मन की अभिलाषाएं अखबारों की ताजा ख़बरें
चौराहे पर स्वेत वस्त्र में लिपटे हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 23, 2012 at 5:36pm — 4 Comments
अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में
रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।
केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा
कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।
कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो
हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों में ।।
मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का
धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।
धर्मों के…
ContinueAdded by Manoj Nautiyal on October 22, 2012 at 9:58am — 5 Comments
कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने
मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने
जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||
मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है
गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है
भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:18am — 5 Comments
हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं
उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।
कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी
ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।
खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत
खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।
सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है
घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:16am — 2 Comments
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