अनायास
तरंगित कल्मषों
बेचैन बुदबुदों के आवर्त से दूर
किसी निविड़ एकांत में
जब समस्त दिशाएं खो चुकी हों
अपनी पगध्वनि
सारे पदक्षेप
और तिरोहित हो चुके हों
निष्ठुर विमर्श के सारे आर्तनाद,
अपनी सारी भभक सारी तपिश
और साथ लेकर अपने
सारे चटकीले रंग
आना तुम भी
बस एक बार…
Added by राजेश 'मृदु' on October 31, 2012 at 4:30pm — 5 Comments
कुहरीले जंगल में हंसती
हरी हवा सी चलती हूं
मुक्त गगन से गिरी ओस हूं
तृण टुनगों पर पलती हूं
हू हू करता आंख दिखाता
रे तमस किसे भरमाता है
देख मेरा बस एक नाद ही
कैसे तुझे जलाता है
अभी जरा निष्पंद पड़ी हूं
कहां अभी तक हारी हूं
भूल न करना मरी पड़ी हूं
अबला,बाल,बेचारी हूं
अरे कुटिल यह चाप तुम्हारा
वृथा चढ़ा रह जाएगा
तेरा ही तम कहीं किसी दिन
तुझको भी डंस…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments
कैसे कह दूं हिंद हूं मैं
चीन हूं या अमरीका हूं
यूरोप शुष्क भावों की धरती
या अंध देश अफ्रीका हूं
प्रिय विछोह के विरह ताप से
सहस्त्र युगों तक तप्त रही मैं
निर्जनता के दु:सह शाप से
सदियों तक अभिशप्त रही मैं
लखकर तब मेरे विषाद को
दृग केशव के भर आए थे
असंख्य यक्ष गंधर्वों ने मिलकर
अश्रु के अर्ध्य चढ थे
मुरली से फिर जीवन फूटा
उल्लासित दशों दिशाएं थी
ओढ ओस की झीनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 3:58pm — 9 Comments
आंखें करे शिकायत किनसे
वही व्यथा क्यों ढोते हैं
बीज वपन तो करता मन है
वे नाहक क्यों रोते हैं
पलकों की बंदिश में हरदम
क्यों वे रोके जाते हैं
और तड़पते देह यज्ञ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 5, 2012 at 3:55pm — 7 Comments
तेरे भी ख्वाबों में कोई
अलबेली आई तो होगी
कनक कलश भर सुधा लुटाते
क्षितिज नए लाई तो होगी
उसकी कोरी एक छुअन से
पोर-पोर जागी तो होगी
पलक बंद कर तुमने भी तो
Added by राजेश 'मृदु' on October 4, 2012 at 7:31pm — 4 Comments
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