२२ २२ २२ २
खुद ही काटे अपने पर
क्या धरती अब क्या अम्बर
कोई खिड़की न कोई दर
कितना उम्दा अपना घर
दुनिया तेरी धरती पर
अपनी हद बस ये गज भर
बंद कफ़स हो चाहे खुला
तुझको अब कैसा है डर
सारा आलम रख ले तू
मेरी अब परवाह न कर
मेरी अपनी मंजिल है
तेरी अपनी राह गुज़र
बेजा अब हैं तीर तेरे
तन पत्थर है मन पत्थर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on October 29, 2017 at 8:44pm — 17 Comments
२१२२ १२१२ २२
जिन्दगी से जबाब माँगेगा
लम्हा लम्हा हिसाब माँगेगा
जिसमे लिक्खा हुआ गणित तेरा
वक़्त ऐसी किताब माँगेगा
देख तेरा खुला हुआ वो सबू
खाली प्याला शराब माँगेगा
रंग बदले भले कई मौसम
फूल अपना शबाब माँगेगा
कैद जिसके लिए किया जुगनू
कल वही माहताब माँगेगा
पाक नीयत से देखना उसको
चाँद वरना निकाब माँगेगा
कैद तेरी किताब में अबतक
अपनी खुशबू गुलाब…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 12, 2017 at 9:11am — 34 Comments
बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121
किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन
क्या पता है आड में गुल की छुपा है ख़ार कौन
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन
मर गया है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ
सब ही खाते थे तरस लेकिन उठाता भार कौन
पेट भरने के लिए…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2017 at 9:30pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
जिंदगी की जुस्तज़ू में आ गई जाने किधर
अजनबी इस भीड़ में ढूँढे किसे मेरी नजर
बे-नियाज़ी की यहाँ दीवार कैसे आ गई
'हम नफ़स अह्ल-ए-महब्बत कुछ इधर हैं कुछ उधर
साथ साया भी रहेगा जब तलक है रोशनी
कौन किसका साथ देता बेवजह यूँ उम्रभर
लौट कर आती नहीं ये खूब जीले जिंदगी
इक सितारा कह गया यूँ आसमां से टूटकर
खींच लाई झोंपड़ी को जब महल की रोटियाँ
एक दिन आकर अना ने ये कहा जा डूब मर
कोई…
Added by rajesh kumari on October 5, 2017 at 10:46am — 14 Comments
बहरे रमल मुसम्मिन मख़बून महजूफ़ मक़तूअ--
2122 1122 1122 22
एक चेह्रे पे कई चेह्रे लगा रक्खे हैं
इस ज़माने से कई राज़ छुपा रक्खे हैं
अश्क आँखों में लिये और हँसी चेह्रे पर
दर्द हमने कई सीने में दबा रक्खे हैं
टूट जाएँ न कहीँ अश्क जमीं पर गिरकर
अपनी पलकों पे करीने से सजा रक्खे हैं
इस ज़माने को कभी ख्वाब मेरे रास आएँ
सोचकर…
Added by rajesh kumari on October 1, 2017 at 1:31pm — 15 Comments
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