जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा
चरागे इश्क जल रहा होगा
परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा
बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा
गलितयों से जो दोस्ती कर ले
वो अपने हाथ मल रहा होगा
नयन हैं तिश्नगी भरे उसके
कोई तो ख्वाब पल रहा होगा
भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होगा
छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा
जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 12:27pm — 23 Comments
मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं
चलाते योजना अक्सर वो अपने जेब भरने को
सियासी हैं बड़े नदियों का रुख भी मोड़ देते हैं
जो हैं कमजोर दुनिया में करें वो ज्ञान की बातें
बहादुर हैं जो हाँ करवाने सर ही फोड़ देते हैं
करे हैं जोंक सी यारी लिपट के यार मतलब से
निकल जाता है जब मतलब वो यारी तोड़ देते हैं
हवाएं जब करें साजिश चटक जाते हैं तब फानूश
तमस से जंग…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 3:30pm — 10 Comments
मैं शाम
ढलने का इंतज़ार करता हूँ
सूरज !!!
जिसकी तपिश से
घबराया सा
झुलसा सा
मुरझाया सा
खींच लेना चाहता हूँ
रात की विशाल
छायादार चादर
जिसमें जड़े हैं
चाँद तारे
और बिखरे से
सफ़ेद रुई के फोहों से
मखमली दूधिया बादल
थकान मिटाने
को होता है
सन्नाटों का गीत
.........................................
सन्नाटों का गीत
अद्भुत है अद्वितीय है
इसकी लय…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 8, 2013 at 1:30pm — 14 Comments
ये नज़र किससे मेरी टकरा गई
पल में दिल को बारहा धडका गई
एक टक उसको लगे हम ताकने
शर्म थी आँखों में हमको भा गई
लब गुलाबों से बदन था संदली
खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई
कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह
गेसुओं में इस कदर उलझा गई
पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह
जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई
“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का
मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई
संदीप पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2013 at 1:30pm — 14 Comments
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