हमेशा दौड़ में पिछड़ा रहा हूँ
मगर चिन्तन में मैं कछुआ रहा हूँ
खिलौना मैं नहीं जो खेल लोगे
हूँ इंसा मैं भी ये समझा रहा हूँ
सितम ढाओं, गुमां कर लो जी भर के
ये मत कहना कि मैं पछता रहा हूँ
मैं मुफ़लिस ही सही कोई नहीं गम
हमेशा दिल से ही सच्चा रहा हूँ
तेरी तस्वीर पलकों में सजा के
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on October 20, 2014 at 10:00am — 5 Comments
पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१) से आगे …
संगीत-संध्या में धमाल करते-करते और रात्री-भोजन के सुस्वादु व्यंजनों के दौरान भी एक दूसरे की जम कर खिंचाई हुयी और भोजपुरी गाने के बोल पर ठहाके पर ठहाके लगे | आ. बागी जी, आ. सौरभ जी ने कई भोजपुरी-ठुमके वाले…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on October 2, 2014 at 8:30am — 14 Comments
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