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Dr.Vijay Prakash Sharma's Blog – October 2014 Archive (2)

वैदेही

एक बार फिर आओ न वैदेही
फिर राम की बनो सनेही
इस बार उसके साथ वन में मत जाओ
उसे ले चलो किसी शहर की ओर
जहाँ अनगिनत रावण तुम्हारे
अपहरण का स्वप्न सजाये बैठे हैं.
रावण द्वारा अपहृत हो जाओ,
इन नए राक्षसों के विनाश का
तुम फिर से कारण बनो.
एक नया संसार बसाओ
इनका अब संहार कराओ.

तनिक फिर भृकुटि बनालो
राम को फिर से बुला लो.

मौलिक व अप्रकाशित
विजय प्रकाश शर्मा

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 8, 2014 at 10:30pm — 18 Comments

सहनशक्ति

सहनशक्ति

उदास मन से ही सही,
ले चलो मुझे अपने
उस नरक के अंदर
जिसमे तुम सदियों से
रह रही हो ,
सब दुःख तुम
स्वयं सह रही हो.
एक बार मैं भी तो जानू
स्त्रियों को इतनी
सहनशक्ति
कहाँ से मिलती है?

विजय प्रकाश शर्मा
अप्रकाशित व मौलिक

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on October 6, 2014 at 11:50am — 10 Comments

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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