दीप जले हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनाएँ
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलाएँ
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकाएँ
क़दम बढ़े हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
कलघोषों के बीच
आहुति देते जाएँ
यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित
सिद्ध हों सभी ॠचाएँ
पथभ्रष्टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 21, 2014 at 10:47am — 2 Comments
बचें दृष्टि से दृष्टिदोष फैला हुआ है चहुँ दिश।
निकट या दूर दृष्टि सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।
दृष्टि लगे या दृष्टि पड़े जब डिढ्या बने विषैली।
तड़ित सदृश झकझोरे मन जब दृष्टि बने पहेली।
गिद्धदृष्टि से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।
जन प्रतिनिधि, सत्ताधीशों के कर्म अनीति से लथपथ।
रखें दृष्टिगत हो जन-जाग्रति, जन-निनाद, जन-क्रांति।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 9, 2014 at 9:16am — 3 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |