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AVINASH S BAGDE's Blog – October 2011 Archive (5)

कंदील नहीं मिलते

कभी रास्ते कभी निशाने-मंजिल नहीं मिलते.

 सफीने डूब जाते है उन्हें साहिल नहीं मिलते.…

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Added by AVINASH S BAGDE on October 19, 2011 at 8:00pm — 4 Comments

कैसा असर दोस्तों?

कैसा असर दोस्तों?

प्यार का है ये कैसा असर दोस्तों.
रब के आगे झुका मेरा सर दोस्तों.
मेरी धड़कन का हर तार गाने लगा,
उसकी धुन में ही चारों पहर दोस्तों.
एक रेला सा  आया  बहा ले  गया,
मेरे जज्बात की हर  लहर दोस्तों.
अब ख्यालों की बस्ती यूँ आबाद है,
चाहे घर हो या हो वो सफ़र दोस्तों.
प्यार की छल छलाती नदी हो गई,
ज़िन्दगी जो थी सूखी नहर दोस्तों.
उनकी आँखों को मै जाम कहने…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments

लड़ता रहा कबीर..

मन से फक्कड़ संत वह, तन से रहा फ़कीर.

खड़ीं सामने रूढ़ियाँ, लड़ता रहा कबीर..


तेरह-ग्यारह नाप के, रचे हजारों छंद.
दोहे संत कबीर के, करे बोलती बंद..


पूजे लोग कबीर को, ले अँधा विश्वास..
गड़े कबीरा लाज से, दोहे हुए उदास..


थोडा बोलो चुप रहो, सुनो लगा कर कान.
छोटे मुख मै क्या कहूं, कह गए लोग सुजान..


कथ्य कला काया कसक, कागज़ कलम किताब.
सब मिल कर पूरा करे, ज्ञानदेव का ख्वाब..

अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on October 5, 2011 at 3:30pm — 5 Comments

आती हमको लाज.

हिंदी को समर्पित दोहे.



मठाधीश सब हिंदी के,करते ऐसा काज.
हिन्दीभाषी कहलाते,आती हमको लाज.


हिंदी दिवस कहे या फिर सरकारी अवसाद.
अपने भाई-बन्दों  में,बंटता है परसाद. 


हिंदी का जिन सूबों में,होता गहन विरोध.
राजनीती सब छोड़ के,करिए इस पर शोध.


अंग्रेजी का हम कभी,करते नहीं…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 3, 2011 at 8:06pm — 7 Comments

सूखी नदी के सामने

(1)

मुकद्दर की बात.



कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल…

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Added by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 4:00pm — 6 Comments

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