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Veerendra Jain's Blog – November 2010 Archive (4)

अस्तित्व...





देखे हैं कभी तुमने,

पेड़ की शाखों पर वो पत्ते,



हरे-हरे, स्वच्छ, सुंदर, मुस्कुराते,

उस पेड़ से जुड़े होने का एहसास पाते,



उस एहसास के लिए,

खोने में अपना अस्तित्व

ना ज़रा सकुचाते,



पड़ें दरारें चाहे चेहरों पर उनके,

रिश्तों मे दरारें कभी वो ना लाते,



किंतु,



वही पत्ते जब सुख जाते,

किसी काम पेड़ों के जब आ ना पाते,



वही पत्ते उसी पेड़ द्वारा

ज़मीन पर… Continue

Added by Veerendra Jain on November 29, 2010 at 11:39am — 5 Comments

मुंबई : 26 / 11...

वो शाम,

जिस पर था 26/11 का नाम

शांत, सुंदर, रोज़मर्रा की शाम

कर रही थी रात का स्वागत शाम,

तभी समंदर के रास्ते

आए दबे पांव

कुछ दहशतगर्द

लिए हाथों में

आतंक का फरमान,

मक़सद था जिनका केवल एक,

फैलाना आतंक

और लेना

बकसूरों की जानें तमाम I



किसी माँ ने बेटा खोया,

पिता ने अपना सहारा गँवाया,

किसी बहन का भाई ना आया,

कुछ महीनों के एक बच्चे ने

खोई दुलार की छाया,

हुई शहीद सैंकड़ों काया

जिनने अपना खून… Continue

Added by Veerendra Jain on November 26, 2010 at 6:18pm — 1 Comment

समंदर और सीप...

आज सवेरे

था मौसम का मिजाज़

भी कुछ खुशनुमा-सा,

थी हल्की सी धूप

और ज़रा सा एहसास भी ठंड का,

थी दफ़्तर की छुट्टी

तो आज मन ने लगाई अपनी अर्ज़ी

इस मौसम का लुत्फ़ उठाएँ

समंदर किनारे सैर कर आएँ I



कंधे पर एक दरी उठाए

हाथ में लिए एक किताब

पहुँचा किनारे पर समंदर के,

तो देखा मैंने,

था आज समंदर

कुछ उदास,

खुद में खोया

चुपचाप

हो जैसे खुद से नाराज़ I



क़तरा क़तरा जुटाकर हिम्मत

थामे लहरों का हाथ

रखा… Continue

Added by Veerendra Jain on November 20, 2010 at 12:32pm — 2 Comments

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,

हैं साथ मेरे, हर एक पल में

तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I



मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,

ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,

तू संग चलता है ऐसे मेरे,

है चलता ये आसमाँ संग जैसे I



हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,

हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,

यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,

हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I



तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,

ख़ुदा…

Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

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