थर्रा गये मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर
जब कर्ण में पड़ी मासूम की चीत्कार
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग की दीवार
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु समंदर
दिलों में नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 25, 2012 at 7:38pm — 24 Comments
लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां
खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां
छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई
उड़ती चिड़िया ने नभ से न आने की कसमें खाई
बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई
गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे, झट उर से चिपकाई
सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे
कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे
देख सामाजिक ढांचा…
Added by rajesh kumari on December 20, 2012 at 11:30am — 22 Comments
अनुपम अद्दभुत कलाकृति है या द्रष्टि का छलावरण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं द्रग और अंतःकरण
त्रण-त्रण चैतन्य औ चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा
पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा
शीर्ष पर बरसते हैं रजत,कभी स्वर्णिम रुपहले कण
जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण…
Added by rajesh kumari on December 16, 2012 at 10:30pm — 11 Comments
रवि किरणों को कंटक सम चुभता
नोच डाला गिद्धों ने जो गिरी का बदन
करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का
कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन
जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा
आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन
मासूम गंगा की छीन ली पावनता
बहाते गन्दगी धुलते मैले कुचैले वसन
शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या
प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन
क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को
कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे …
ContinueAdded by rajesh kumari on December 2, 2012 at 10:34am — 10 Comments
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