उँगलियों पर रहे थिरकती,
लेखा-जोखा समय का रखती,
देखो वो चली, विदा ले चली,
हाथ हिलाते, हँसते-मुस्काते,
ये बारह माहों की गिनती,
तीन सौ पैंसठ दिनों का सफर,
खत्म कर पकड़ेगी, इक कोरी-नई ड़गर,
इसके नए पन्नों पर होगी ,
अब लिखी इक इबारत नई,
छोड़ अनेकों पीछे, अनेकों साथ जोड़ते,
देखो वो आई, आ ही चली,
इक नूतन बारह माहों की गिनती,
समय-प्रवाह थपेड़े में ,
जीवनयात्रा के रेले में,
इक वर्ष और…
ContinueAdded by Arpana Sharma on December 31, 2017 at 10:22pm — 7 Comments
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