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निगाहों से बुला लीजे शरारत और हो जाए ।
जो धड़कन में बसा लीजे इनायत और हो जाए।।
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कलाई की अदा देखी कई पैगाम देती है ।
जरा कंगन बजा दीजे कयामत और हो जाए।।
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ये परवानों की महफ़िल है गिरा दीजे ज़रा चिलमन।
कहीं ऐसा न हो हमदम अदावत और हो जाए।।
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दिलों को चैन हम देंगे जफ़ा से तौबा करने दो।
वफ़ा की राह में चाहे बगावत और हो जाए।।
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मेरे ख़त में तड़पती…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on December 22, 2016 at 9:30pm — 8 Comments
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