Added by rajkumar sahu on July 21, 2011 at 4:57pm — No Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 1:46pm — 2 Comments
"चल रहा आदमी"
वक़्त के हासिए पर लटक रहा आदमी
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 11:24am — 3 Comments
Added by rajkumar sahu on July 20, 2011 at 9:23pm — No Comments
वो मेरे पास, जाने क्यूँ, दबे-पाँव से आते हैं |
यही अंदाज़ हैं उनके, जो मेरा दिल, चुराते हैं ||
वो जब पहलू बदलते हैं, कभी बातों ही बातों में |
मुझे महसूस होता है, की वो कुछ कहना चाहते हैं ||
इरादा जब भी करता हूँ, मैं हाल-ए-दिल सुनाने का |…
Added by Shashi Mehra on July 20, 2011 at 8:30pm — 1 Comment
कोई आई और मुझे दीवाना बना कर चली गयी
साँसों में मेरी घुल गई
आँखों में मेरी घर कर गयी
दिल के आंगन में आशियाँ बना के बस गयी |
उसे ढूँढूं कहाँ में यूँ गलियों में …
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on July 20, 2011 at 2:43pm — 2 Comments
सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था
कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद
कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ…
ContinueAdded by Veerendra Jain on July 20, 2011 at 12:59pm — 10 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on July 20, 2011 at 7:10am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2011 at 11:30pm — No Comments
जिसकी ख़ातिर ख़्वाब जवाँ,
उसे तलाशूँ कहाँ कहाँ,
लाख छुपाऊँ अश्कों को,
चेहरे से है दर्द अयाँ,
सौ शहरों में घूम लिया,
नहीं मिला है एक मकाँ.
कितना तल्ख़ सफ़र काटा,
उखड़ी साँसें घायल पाँ,
चाहत में क्या क्या गुज़री,
रिसते छालें करें बयाँ,
दिल रोशन सा एक दिया,
आज उगलता एक धुआँ.
खुशियों की यूँ शाम हुई,
खूँ में डूबा आज समाँ
तेरी यादों की माला,
टूटी बिखरी यहाँ…
Added by Rohit Sharma on July 19, 2011 at 3:41pm — 1 Comment
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 1:20pm — No Comments
वो नन्हा सा था,
थे पंख उसके छोटे, छोटी सी थी काया,
नन्ही सी उन आँखों में जैसे पूरा गगन समाया!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
छोटी छोटी प्यारी आँखों में उड़ने का था सपना,
पंख फैला सर्वत्र आकाश को बनाना था अपना,
हर कोशिश के बाद मगर फिसल-फिसल वो जाता!
सोचती थी कैसे उड़ेगा....
इक दिन फिर नन्हे-नन्हे से पर उसके थे खुले,
थी शक्ति क्षीण मगर बुलंद थे होंसले,
पूरी हिम्मत समेट कर घोसले से वो कूदा!
सोचती थी कैसे…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 19, 2011 at 10:06am — 3 Comments
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं |
वो, खुदा समान, महान हैं ||
वो ही, पैदा करते हैं, फसल को |
वो ही, जिन्दां रखते हैं, नस्ल को ||
वो तो, ज़िन्दगी करें, दान है |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
उन्हें, अपने काम से काम है |
वो कहें, आराम , हराम है ||
वो असल में, अल्लाह की शान हैं |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
जिन्हें, बस ज़मीन से, प्यार है |
करें जाँ, ज़मीं पे, निसार हैं ||
वो तो, सब्र-ओ-शुक्र की, खान हैं |
जिन्हें, लोग कहते,…
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 10:00am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 9:18am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 8:42am — 2 Comments
Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 11:17pm — No Comments
ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |
मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |
कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |
दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |
किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |
Added by Prabha Khanna on July 18, 2011 at 7:00pm — 11 Comments
Added by rajkumar sahu on July 18, 2011 at 6:52pm — No Comments
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