समसामयिक दोहे-
अर्थशास्त्र का ज्ञान ही, सब देशों का मूल.
कभी बढाता शक्ति यह, कभी हिला दे चूल.१
राजनीति परमार्थ को, लिया स्वार्थ में ढाल.
खुद सुख सुविधा भोगते, सौंप दुःख जंजाल.२
राजनीति के शास्त्र में, कूटनीति के मन्त्र.
दलदल कीचड़ वासना, फलते पाप कुतंत्र.३
जीवन में संवेदना, बहुत काम की चीज.
कभी विफल होती नहीं, मिलें श्रेष्ठ या नीच.४
द्वेष भावना में किये, गए…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2019 at 8:00pm — 6 Comments
चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।
दुखी हुआ बेचैन भी, छूट गया जब हाथ।।1
चन्द्रयान का हौसला, विक्रम था भरपूर।
क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2
माँ की ममता देखिए, चन्द्रयान में डूब।
ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3
चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।
सराहना कर विश्व ने, दिया मान भरपूर।।4
चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।
छीन लिया यमराज से, साध…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 26, 2019 at 9:00pm — 6 Comments
कलाधर छन्द
शारदे समग्र काव्य में विचार भव्यता कि
सत्यता उघार के कुलीन भाव मन्त्र दें।
शब्द शब्द सावधान अर्थ की विवेचना
करें विशुद्ध भाव से सुताल छन्द तंत्र दें।।
व्यग्रता सुधार के विनम्रता सुबुद्धि ज्ञान
मान के समस्त मानदण्ड के सुयंत्र दें।
आप ही कमाल वाह वाह की विधायिनी
सुभाषिनी प्रवाह गद्य पद्य में स्वतन्त्र दें।।
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार . .केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 28, 2016 at 10:37am — 6 Comments
मुक्तक
जिसेे भी देखिये नख शिख तलक मानव नही लगता।
लिए बम वासना शमसीर हक मानव नही लगता।।
मुसीबत ने यहाँ मुफ़लिस किसानो को रुलाया है. .
बड़ी ताकत कहूं जो यार तक मानव नही लगता।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2016 at 5:06pm — 3 Comments
प्रतिपल अच्छा देखिए
आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.
आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1
आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.
कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2
प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.
बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3
अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.
दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें बिन खोंच.4
संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 8:30am — 8 Comments
मुहावरों में दोहा छंद की छटा...
गाल बजा कर दल गये, जो छाती पर मूंग.
वही अक्ल के अरि यहां, बने खड़े हैं गूंग. १
शीष ओखली में दिया, जब-जब निकले पंख.
उंगली पर न नचा सके, रहे फूंकते शंख. २
डाल आग में घी करे, हवन दमन की चाह.
अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह. ३
फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.
खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४
अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.
दोष…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2016 at 9:30am — 10 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2016 at 9:21pm — 13 Comments
महीन है विलासिनी
महीन हैंं विलासिनी तलाशती रही हवा, विकास के कगार नित्य छांटते ज़मीन हैं.
ज़मीन हैं विकास हेतु सेतु बंध, ईट वृन्द, रोपते मकान शान कांपते प्रवीण हैं.
प्रवीण हैं सुसभ्य लोग सृष्टि को संवारते, उजाड़ते असंत - कंत नोचते नवीन हैं.
नवीन हैं कुलीन बुद्ध सत्य को अलापते, परंतु तंत्र - मंत्र दक्ष काटते महीन हैं.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार.... केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2016 at 8:30pm — 13 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments
दोहो का उपकार
सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.
शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१
मंदिर की श्रद्धा लिये खड़ी दीप- जयमाल.
वरे नित्य सुख- शांति को, रखे प्रेम खुशहाल.२
मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.
मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३
पश्चिम का तारा उदय, हुआ ईद का चांद.
उन्तिस रोज़ो से डरा, छिपा शेर की मांद.४
रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.
उन्तिस दिन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 9, 2016 at 8:30pm — 12 Comments
(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम
करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.
अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.
वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.
तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.
(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष
कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.
तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 8, 2016 at 8:00pm — 8 Comments
कलाधर छंद .........तने- तने मिले घने
वृक्ष की पुकार आज, सांस में रुंधी रही कि, वायु धूप क्रूर रेत, चींखती सिवान में.
मर्म सूख के उड़ी, गुमान मेघ में भरा कि, बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति, त्यागती सिवान में.
डूबती गयी नसीब, बीज़ कोख में लिये, स्वभाव प्रेम छांव भाव, रोपती सिवान में.
कोंपलें खिली जवां, तने- तने मिले घने, हसीन वादियां बहार, झूमती सिवान में.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 7, 2016 at 6:30pm — 10 Comments
गंगा निर्मल पावनी, नहीं मात्र जल धार.
अपने आंचल नेह से, करती है उद्धार.
करती है उद्धार, प्रेम श्रद्धा उपजा कर.
जन खग पशु वन बाग, सिक्त हैं कूप-सरोवर.
हुआ कठौता धन्य, करे सबका मन चंगा.
भारत का सौभाग्य, मोक्ष सुखदायी गंगा.
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 4, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन
(१)
धन्यवाद ज्ञाप आज आपका विशेष श्लेष वंदना करूं यथा प्रणाम राम-राम है.
दूर - दूर से यहां पधार के पवित्रता सुमित्रता दिया हमें अवाम राम-राम है.
शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.
आपके सुयोग से रचे गये सुपंथ मंत्र भव्य का प्रणाम ब्रह्म- धाम राम-राम है.
(२)
धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2016 at 9:00am — 8 Comments
घूरे के दिन भी संवरते ....
ज़िंदगी जो आज है
वह कल थी
किसी घूरे पर पड़ी मल
गंध से कराहती.
कोई पूंछने को न आता
सितारे दूर से निकल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 19, 2016 at 5:30pm — No Comments
दोहा छंद......ग्यारह मनके
भले भलाई ही करें, बुरे बुने नित जाल.
भले हुए यश-चांदनी, बुरे क्रूर-तम-काल.१
सत्य-अहिंसा-प्रेम रस, सदगुरु की पहचान.
रखे मुक्त हर दोष से, जैसे कमल-कमान.२
सूरज की किरनें चली, सत्य ज्ञान के पार.…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2016 at 10:49am — 4 Comments
गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२, ११२२, २२
आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.
मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.
शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'
संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.
ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,
चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.
ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,
लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.
वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,
होलिका खार की हर बार जलाया…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2016 at 12:30am — 4 Comments
कलाधर छंद......होलिका दबंग है
विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५ तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है. इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं. संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव" में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..
यथा----…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2016 at 12:00pm — 4 Comments
गज़ल.....१२२ १२२ १२२ १२२
हमारे घरों का उजाला लिये जो.
हंसीं शशि मलाला सितारा लिये जो.
लड़ी गोलियों से बिना खौफ खाये
खुले आसमां का हवाला लिये जो.
दुआ यदि सलामत कयामत भी हारे
ये तारिख बलन्दी की माला लिये जो.
चुरा कर खुशी ज़िन्दगी लूट लेते-
उन्हीं से मुहब्बत–फंसाना लिये जो.
ये होली-दिवाली मिले ईद-सत्यम
हंसी फाग समरस तराना लिये जो.
सुखनवर....केवल प्रसाद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 11:58am — 9 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 23, 2016 at 10:31am — 2 Comments
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