Added by Sushil Sarna on March 2, 2021 at 7:30pm — 4 Comments
दोहा त्रयी : वृद्ध
चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।
लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।
वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on January 29, 2021 at 5:39pm — 5 Comments
Added by Sushil Sarna on January 26, 2021 at 3:52pm — 7 Comments
दस्तक :
वक़्त बुरा हो तो
तो पैमानें भी मुकर जाते हैं
मय हलक से न उतरे तो
सैंकड़ों गम
उभर आते हैं
फ़िज़ूल है
होश का फ़लसफ़ा
समझाना हमको
उनके दिए ज़ख्म ही
हमें यहां तक ले आते हैं
वो क्या जानें
कितने बेरहम होते हैं
यादों के खंज़र
हर नफ़स उल्फ़त की
ज़ख़्मी कर जाते हैं
तिश्नगी बढ़ती गई
उनको भुलाने के आरज़ू में
क्या करें
इन बेवफ़ा क़दमों का
लाख रोका
फिर भी
ये
उनके दर तक ले जाते हैं
उनकी…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2020 at 8:43pm — 2 Comments
बड़ी नज़ाकत से हमने .....
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
अपने -अपने दर्दों को
मुस्कराहटों में ढाला है
मुद्दा ये नहीं कि
चराग़ बेवफ़ाई का
जलाया किसने
सच तो ये है अश्क चश्म में
दोनों ने संभाला है
ये हाला है उल्फत की
उल्फत का ये प्याला है
पाक मोहब्बत का दोनों के
दिल में पाक शिवाला है
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित
Added by Sushil Sarna on November 18, 2020 at 6:07pm — 2 Comments
अनजाने से .....
मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्ब में
तुम्हारे बिम्ब को
तराशने में
तुम
व्यस्त रहे
स्वप्न बिम्बों में
अपना स्वप्न
तराशने में
हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दूसरे को
तलाशने में
वक्त उतरता रहा
धूप के सायों की तरह
मन की दीवारों से
हम के आवरण से निकल
मैं और तू
रह गए कहीं
अधूरी कहानी के
अपूर्ण से
अफ़साने…
Added by Sushil Sarna on November 4, 2020 at 7:30pm — 7 Comments
जीने से पहले ......
मिट गई
मेरी मोहब्बत
ख़्वाहिशों के पैरहन में ही
जीने से पहले
जाने क्या सूझी
इस दिल को
संग से मोहब्बत करने का
वो अज़ीम गुनाह कर बैठा
अपने ख़्वाबों को
अपने हाथों
खुद ही तबाह कर बैठा
टूट गए ज़िंदगी के जाम
स्याह रातों में
ज़िंदगी
जीने से पहले
डूबता ही गया
हसीन फ़रेबों के ज़लज़ले में
ये दिल का सफ़ीना
भूल गया
मौजों की तासीर
साहिल कब बनते हैं
सफ़ीनों की…
Added by Sushil Sarna on November 2, 2020 at 6:05pm — 8 Comments
आहट पर दोहा त्रयी :
हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।
आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।
आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 28, 2020 at 9:11pm — 4 Comments
गुज़रे हुए मौसम, ,,,
अन्तहीन सफ़र
तुम और मैं
जैसे
ख़ामोश पथिक
अनजाने मोड़
अनजानी मंजिल
कसमसाती अभिव्यक्तियां
अनजानी आतुरता
देखते रह गए
गुजरते हुए कदमों को
अपने ऊपर से
गुलमोहर के फूल
तुम और मैं
दो ज़िस्म
दो साये
चलते रहे
खड़े -खड़े
मीलों तक
और
ख़ामोशियों के बवंडर में
देखते रहे
अपनी मुहब्बत
तन्हा आंखों की
गहराईयों में
गुज़रे हुए मौसम की…
Added by Sushil Sarna on October 27, 2020 at 7:55pm — 6 Comments
ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद
हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह
हमारे बीच का मौन
जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित
रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम
सिर को झुकाये खड़ी हो
और
दूसरे किनारे पर मैं
मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे
हम दोनों के मिलन में अवरोधक
ख़ामोशी के
ख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 16, 2020 at 6:54pm — 6 Comments
पागल दिल का पागल सपना ......
इत् -उत् ढूँढूँ साजन अपना
नैनन द्वार भी आये न सपना
बैरी कजरा बह -बह जाए
का से कहूँ दुःख साजन अपना
तुम यथार्थ से बन गए सपना
प्यार किया करके बिसराया
प्रीतम तोहे तरस न आया
तडपत तडपत रैन बिताई
काहे तो पे ये मन आया
मुश्किल दिल को है समझाना
भूलूँ कैसे तेरी बातें
प्यार भरी वो प्यारी रातें
हर आहट पर ऐसा लगता
लौटी जैसे फिर मुलाकातें
आहत करे तेरा यूँ…
Added by Sushil Sarna on October 14, 2020 at 6:21pm — 2 Comments
पानी से आग बुझाने की ....
किस तिनके ने दी इजाज़त
घर में धूप को आने की
दहलीज़ पे रातों की आकर
पलकों में ख़्वाब जलाने की
जिस खिड़की पर लगी थी चिलमन
नज़र से हुस्न बचाने की
उस खिड़की पर रुकी थी नज़रें
इस कम्बख़्त ज़माने की
मंज़िल उसको मान के हम
उसके इश्क में जलते रहे
वो चालें अपनी चलते रहे
हमसे हमें चुराने की
ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही रही
पलकों में घर बनाने की
नादाँ दिल को मिली सज़ा
नज़रों से नज़र मिलाने की
कसर न छोड़ी…
Added by Sushil Sarna on October 12, 2020 at 3:25pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on October 7, 2020 at 3:03pm — 2 Comments
वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments
अपने रूप पर ऐ चाँद तू ........
अपने रूप पर ऐ चाँद तू
क्यों इतना इतराया है
तू तो मेरे चाँद का
बस हल्का सा साया है
केसरिया है रूप तेरा
केसरिया परछाईं है
कौमुदी ने पानी में
प्रीत की पेंग बढ़ाई है
विभावरी का स्वप्न है तू
चांदनी का प्यारा है
पानी में तेरा अक्स
बड़ा हसीँ छलावा है
अक्स नहीं यकीं है वो
इन बाहों को जो भाया है
ख़्वाब है मेरी नींद का वो
हकीकत में हमसाया है
खुदा ने अपने हाथों से
मेरे चाँद को बनाया…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2020 at 5:04pm — No Comments
क्षणिकाएं : जिन्दगी पर
जिंदगी
जीती रही
मिट जाने के बाद भी
जिंदगी के लिए
कैद में
निर्जीव फ्रेम के
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
लगा देती है
जिन्दगी
आंखों की चौखट पर
सांकल
हर प्रतीक्षा की
सांसो से
अनबन
होने के बाद
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हो गया
गिलास खाली
पानी
बिखर जाने के बाद
थी
फिर भी उसमें
शेष
थोड़ी सी
नमी
अनदेखी
जिन्दगी…
Added by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 8:52pm — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |