सुलगते अँधेरे .......
न जाने आज
मन इतना उदास क्यों है
लगता है
स्मृतियों की सीलन से
मन की दीवारें
भुरभुरा सी गई हैं
यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब
जैसे गिरती दीवारों पर
मन की बेबसी पर
अट्टहास लगा लगा रहे हों
कितनी ढीठ है
ये बरसाती हवा
जानती है मेरी आकुलता को
फिर भी मुझे छू कर
मुझसे मेरा हाल पूछती है
अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे
आहटें
मन के वातायन पर गूँजती…
Added by Sushil Sarna on July 13, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
मन का साहिल ......
जाने कब मेरे अन्तस में
भावनाओं का सागर उफान मारने लगा
भावों की वीचियों पर
चाहत की कश्ती
अठखेलियां करने लगी
दिल के किसी कोने में
एक चाहत उभरी
कि मैं हौले से छू लूँ
फिर वही
अधर दलों पर ठहरी
उल्फ़त की गंध
चुपके से
डूब जाऊँ
किसी मदहोश भंवरे की तरह
पुष्प आगोश में
पराग का रसपान करते हुए
आकंठ तक
और मिल जाए
मेरी चाहत की कश्ती को
मेरे मन का…
Added by Sushil Sarna on July 10, 2021 at 2:57pm — 10 Comments
आशा .......
बहुत कोशिश की
मगर हार गई मैं
उस अनुपस्थिति से
जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है
एक खौफ के लिबास में
मुझे ठेंगा दिखाते हुए
भोर से लेकर साँझ तक
दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच
हमेशा झकझोरती है
किसी ग़ैर की मौजूदगी
मेरे अंतःस्थल को
उस की अनुपस्थिति के लिए
निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं
आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर
थकान की पराकाष्ठा पर
जब बदन निढाल होकर…
Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments
पाकीज़गी ......
मैं
जिस्म से रूह तक
तुम्हारी हूँ
मेरी नींदें तुम्हारी हैं
मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं
मेरी आस भी तुम हो
मेरी प्यास भी तुम हो
मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो
मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो
मगर ख़याल रहे
मेरे जिस्म को
दिखावटी पर्दों से नफ़रत है
मेरे पास आना तो
ज़माने के बेबस लिबास को
ज़माने में ही छोड़ आना
क्योंकि
मेरे जिस्म को
पाकीज़गी पसंद है
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments
Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments
कहानी ..........
पढ़ सको तो पढ़कर देखो
जिन्दगी की हर परत
कोई न कोई कहानी है
कल्पना की बैसाखियों पर
यथार्थ की हवेलियों में
शब्दों की खोलियों में
दिल के गलियारों में
टहलती हुई
कोई न कोई कहानी है
पत्थरों के बिछौनों पर
लाल बत्ती के चौराहों पर
बसों पर लटकी हुई
रोटी के लिए भटकी हुई
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज
कोई न कोई कहानी है
सच
पढ़ सको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 16, 2021 at 5:09pm — 2 Comments
मन पर दोहे ...........
Added by Sushil Sarna on April 13, 2021 at 1:30pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 12:00pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on March 11, 2021 at 8:00pm — 10 Comments
Added by Sushil Sarna on March 2, 2021 at 7:30pm — 4 Comments
दोहा त्रयी : वृद्ध
चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।
लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।
वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on January 29, 2021 at 5:39pm — 5 Comments
Added by Sushil Sarna on January 26, 2021 at 3:52pm — 7 Comments
दस्तक :
वक़्त बुरा हो तो
तो पैमानें भी मुकर जाते हैं
मय हलक से न उतरे तो
सैंकड़ों गम
उभर आते हैं
फ़िज़ूल है
होश का फ़लसफ़ा
समझाना हमको
उनके दिए ज़ख्म ही
हमें यहां तक ले आते हैं
वो क्या जानें
कितने बेरहम होते हैं
यादों के खंज़र
हर नफ़स उल्फ़त की
ज़ख़्मी कर जाते हैं
तिश्नगी बढ़ती गई
उनको भुलाने के आरज़ू में
क्या करें
इन बेवफ़ा क़दमों का
लाख रोका
फिर भी
ये
उनके दर तक ले जाते हैं
उनकी…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2020 at 8:43pm — 2 Comments
बड़ी नज़ाकत से हमने .....
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
अपने -अपने दर्दों को
मुस्कराहटों में ढाला है
मुद्दा ये नहीं कि
चराग़ बेवफ़ाई का
जलाया किसने
सच तो ये है अश्क चश्म में
दोनों ने संभाला है
ये हाला है उल्फत की
उल्फत का ये प्याला है
पाक मोहब्बत का दोनों के
दिल में पाक शिवाला है
बड़ी नज़ाकत से हमने
यादों को दिल में पाला है
सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित
Added by Sushil Sarna on November 18, 2020 at 6:07pm — 2 Comments
अनजाने से .....
मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्ब में
तुम्हारे बिम्ब को
तराशने में
तुम
व्यस्त रहे
स्वप्न बिम्बों में
अपना स्वप्न
तराशने में
हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दूसरे को
तलाशने में
वक्त उतरता रहा
धूप के सायों की तरह
मन की दीवारों से
हम के आवरण से निकल
मैं और तू
रह गए कहीं
अधूरी कहानी के
अपूर्ण से
अफ़साने…
Added by Sushil Sarna on November 4, 2020 at 7:30pm — 7 Comments
जीने से पहले ......
मिट गई
मेरी मोहब्बत
ख़्वाहिशों के पैरहन में ही
जीने से पहले
जाने क्या सूझी
इस दिल को
संग से मोहब्बत करने का
वो अज़ीम गुनाह कर बैठा
अपने ख़्वाबों को
अपने हाथों
खुद ही तबाह कर बैठा
टूट गए ज़िंदगी के जाम
स्याह रातों में
ज़िंदगी
जीने से पहले
डूबता ही गया
हसीन फ़रेबों के ज़लज़ले में
ये दिल का सफ़ीना
भूल गया
मौजों की तासीर
साहिल कब बनते हैं
सफ़ीनों की…
Added by Sushil Sarna on November 2, 2020 at 6:05pm — 8 Comments
आहट पर दोहा त्रयी :
हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।
आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।
आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 28, 2020 at 9:11pm — 4 Comments
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