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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (470)

पूरा किया है कौन वचन आपने जनाब -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



चाहे कमाया खूब  हो धन आपने जनाब

लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।

*

तारीफ  पायी  नित्य  हो  दरवार  में भले

मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।

*

ये  सिर्फ  सैरगाह  रहा  हम  को  है पता

माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।

*

उँगली उठायी नित्य  ही  औरों के काम पर

देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।

*

देखो लगे हैं  लोग  ये  घर  अपना फूँकने

ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।

*…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 8:30am — 9 Comments

तात के हिस्से में कोना आ गया - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२



तात के  हिस्से  में  कोना आ गया

चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।

*

नींद  सुनते  हैं  उसी  की  उड़ गयी

भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।

*

खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी

कह रहा वो  बीज  बोना आ गया।३।

*

डालकर  थोड़ा   रसायन ही  सही

उसको आँखें तो भिगोना  आ गया।४।

*

पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो

एक दिल जिनको भी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 5:00pm — 12 Comments

पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/ २१२१/१२२१/२१२



पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ

जैसे नशेड़ी  देता  है  औरत  को गालियाँ।१।

*

भाती हैं सब को आज ये चतुराइयाँ बहुत

यूँ ही न मिल रही हैं शराफ़त को गालियाँ।२।

*

ये दौर नफरतों को फला इसलिए जनाब

देते हैं सारे  लोग  मुहब्बत  को गालियाँ।३।

*

दूल्हे को बेच सोचते खुशियाँ खरीद लीं

देता न कोई ऐसी तिजारत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2021 at 5:30am — 8 Comments

वोट देकर मालिकाना हक गँवाया- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



दीप की लौ से निकलती रौशनी भी देख ली 

और उस की छाँव  बैठी  तीरगी भी देख ली।१।

*

वोट देकर मालिकाना हक गँवाया हमने यूँ

चार दिन में  सेवकाई  आपकी भी देख ली।२।

*

दुश्मनी का रंग हम ने जन्म से देखा ही था

आज संकट के समय में दोस्ती भी देख ली।३।

*

आ न पाये होश में क्यों आमजन से दोस्तो

दे के उस ने तो  हमें  संजीवनी भी देख ली।४।

*

खूब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2021 at 2:09pm — 20 Comments

जग मिटा कर दुख सुनाने- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२

मत निकल तलवार लेकर

जय  मिलेगी  प्यार लेकर।१।

*

युद्ध  नित   बर्बाद  करता

जी तनिक यह सार लेकर।२।

*

जग मिटा कर दुख सुनाने

जायेगा  किस  द्वार लेकर।३।

*

इस भवन का क्या करूँगा

तुम  गये   आधार   लेकर।४।

*

नेह की दुनिया अलग है

हो जा हल्का भार लेकर।५।

*

बोझ सा हरपल है लगता

दब  गये  आभार  लेकर।६।

*

कर गया कंगाल सब को

हर  भरा  सन्सार  लेकर।७।

*

टूटती  रिश्तों  की माला

जोड़ ले कुछ तार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments

रातें तमस भरी हैं उलझन भरे दिवस हैं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/२१२२



वैसे तो उसके  मन  की  बातें  बहुत सरस हैं

पर काम  इस  चमन  में  फैला  रहे तमस हैं।१।

*

पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की

अब  राम  के  मुखौटे  कैसी  लिए  हवस  हैं।२।

*

ये दौर  कैसा  आया  मर  मिट  गये  सहारे

चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।

*

पसरी  जो  आँगनों  में  उन से  हवा लड़ेगी

इन से लड़ेंगे  कैसे  जो  मन  बसी उमस हैं।४।

*

उस गाँव में हैं  अब  भी  बेढब सुस्वाद…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments

पहरूये ही सो गये हों जब चमन के- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२



बेड़ियाँ टूटी  हैं  बोलो  कब स्वयम् ही

मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।

*

बाँधकर  उत्साह  पाँवों  में चलो बस

पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।

*

पहरूये ही सो गये हों जब चमन के

है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।

*

अब न आयेगा  यहाँ  अवतार हमको

करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।

*

कल जो सेवक  हैं कहा करते थे देखो

हो गये है  आज  वो  साहब  स्वयम्…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments

कच्ची कलियाँ क्यों मरती - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२



काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे

आ जाते हम  यार  ठाँव को धीरे धीरे।१।

*

कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ

सूरज छलता  अगर  छाँव को धीरे धीरे।२।

*

खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या

निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।

*

कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन

पेट देश के लगी  आँव को धीरे धीरे।४।

*

जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें

जो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments

इस बार भी करेंगे ये सौदा किसान का -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का

हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।

*

बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते

बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।

*

नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस

दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।

*

होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही

चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।

*

स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है

रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।

*

सब के टिकी हुई है ये…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments

हम तो हल के दास ओ राजा-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२



हम तो हल के दास ओ राजा

कम देखें  मधुमास  ओ राजा।१।

*

रक्त  को  हम  हैं  स्वेद  बनाते

क्या तुमको आभास ओ राजा।२।

*

अन्न तुम्हारे पेट में भरकर

खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।

*

पीता  हर  उम्मीद  हमारी

कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।

*

हम से दूरी  मत  रख इतनी

आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।

*

खेती - बाड़ी  सब  सूखेगी

जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments

ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर

पार  जाने  के  लिए  पतवार  साथी  तेज  कर।१।

*

ये  लहर  ऐसे  न  साथी  साथ  देगी  अब  यहाँ

झील के  पानी  में  थोड़ी  मार  साथी तेज कर।२।

*

जुल्म  के  पत्थर  इसी  से  कट  गिरेंगे  देखना

पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।

*

काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं

सच कहेंगी  बेड़ियाँ  झन्कार  साथी  तेज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments

यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

.

शेष इस में  क्या  रहा  इनकार  कहने के लिए

कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।

*

काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन

यूँ तो जनता  की  रही  सरकार  कहने के लिए।२।

*

इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं

शेष है बस  नाम  ही  अखबार  कहने के लिए।३।

*

काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें

बात ही  उस की  रही  दमदार  कहने के लिए।४।

*

सब दिहाड़ी पर  बुलाए  उस के ही मजदूर थे

लोग जितने  भी  जुटे  आभार  कहने के…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments

निष्ठुर नगर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२/१२२२/१२



नहीं कुछ गाँव सा सुनता हुआ निष्ठुर नगर

दिखाने घाव मत  जाना सखा निष्ठुर नगर।१।

*

उसे डर है कि उसके हित कमीं आजायेगी

नहीं देता किसी  का  भी  पता निष्ठुर नगर।२।

*

नदी सूखी हुई  कहती  है  प्यासे खेत से

तेरे हिस्से का पानी पी गया निष्ठुर नगर।३।

*

कहाँ तुम बात दुख की यार करते हो भला

खुशी तक में अकेला ही दिखा निष्ठुर नगर।४।

*

निकल पाया न खुद के व्यूह से सायास…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2021 at 8:59am — 9 Comments

दो आशीष नया हो भारत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२



दो आशीष  नया हो भारत

जग में और बड़ा हो भारत।१।

*

आयु बढ़े नित जितनी इसकी

उतना  और  युवा  हो  भारत।२।

*

ज्ञाता हो विज्ञान का लेकिन

साथ ही वेद पढ़ा हो भारत।३।

*

दुख  के  नाले  सब  सूखे  हों

सुख का एक किला हो भारत।४।

*

जिनके घर ढब बन्द पड़े हैं

कहते और खुला हो भारत।५।

*

उनको सबक सिखाना वीरों

जिनकी चाह डरा हो भारत।६।

*

सीमाओं का द्वन्द मिटाकर

दोनों ओर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 8:30am — 9 Comments

ढूँढा सिर्फ निवाला उसने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२



तोड़ के घर का ताला उसने

ढूँढा सिर्फ निवाला उसने।१।

*

लत पीने की ऐसी लगायी

बेच दी माँ की माला उसने।२।

*

खुद औरों के कन्धे पर चढ़

कहता बोझ सँभाला उसने।३।

*

दूध पिलाना था बच्चों को

पर नागों को पाला उसने।४।

*

जिसको हमने माना सूरज

रोका नित्य उजाला उसने।५।

*

जिसको सब खोटा कहते हैं

सिक्का वही उछाला उसने।६।

*

अपनों को ही चोट है मारी

फेंका जब जब भाला…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2021 at 6:35am — 10 Comments

चाँद को जब बदसूरत करने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२


दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी  परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी  एक  मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया  रोज  उतरती  होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments

सब कुछ है अब यार सियासी- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२/२२/२२/२२



जनता पर हर वार सियासी

नेता  की  है  हार  सियासी।१।

*

खून खराबा झेल रहा नित

होकर यह सन्सार सियासी।२।

*

बाहर बाहर फूट का दिखना

भीतर जुड़ना  तार सियासी।३।

*

बस्ती में  आने  मत देना

कोई भी अंगार सियासी।४।

*

घर  फूटेगा  हो  जाने  दो

बातें बस दो चार सियासी।५।

*

देश का पहिया जाम पड़ा है

दौड़ रही  बस कार  सियासी।६।

*

संकट का क्या अन्त करेगा

झूठा हर  अवतार  सियासी।७।

*

दम घोटे है नित जनता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments

औरों से क्या आस रे जोगी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२/२२/२२/२२



मन में जब है प्यास रे जोगी

क्या लेना  सन्यास  रे जोगी।१।

*

महलों जैसे  सब  सुख भोगे

क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।

*

व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में

यौवन का मधुमास रे जोगी।३।

*

हम से कहता वासना त्यागो

छिप के करता रास रे जोगी।४।

*

खुद ही जब ये निभा न पाया

औरों से  क्या  आस रे जोगी।५।

*

मत कह बन्धन मुक्त हुआ है

तू भी हम  सा  दास रे जोगी।६।

*

तन का है या मन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments

भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है - लक्ष्मण धामी'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२



भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है

शुभ रहे नव  वर्ष  ये  जो आ रहा है।१।

*

आँख जब आँसू झराने को विवश थी

अन्त उस मौसम  का होने जा रहा है।२।

*

जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर

भोर का  सूरज  हमें  समझा रहा है।३।

*

बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का

ये वचन मन को  सभी के भा रहा है।४।

*

पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी

साथ यह उम्मीद  साथी  ला रहा है।५।

*

बाँटना …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments

धरती माता ने सारे दुख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं

लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।

*

उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर

इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।

*

इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का

मौसम के हालातों  जैसे  हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।

*

खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ

व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।

*

सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये

उनके…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments

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