२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहे कमाया खूब हो धन आपने जनाब
लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।
*
तारीफ पायी नित्य हो दरवार में भले
मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।
*
ये सिर्फ सैरगाह रहा हम को है पता
माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।
*
उँगली उठायी नित्य ही औरों के काम पर
देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।
*
देखो लगे हैं लोग ये घर अपना फूँकने
ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 8:30am — 9 Comments
तात के हिस्से में कोना आ गया
चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।
*
नींद सुनते हैं उसी की उड़ गयी
भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।
*
खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी
कह रहा वो बीज बोना आ गया।३।
*
डालकर थोड़ा रसायन ही सही
उसको आँखें तो भिगोना आ गया।४।
*
पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो
एक दिल जिनको भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 5:00pm — 12 Comments
२२१/ २१२१/१२२१/२१२
पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ
जैसे नशेड़ी देता है औरत को गालियाँ।१।
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भाती हैं सब को आज ये चतुराइयाँ बहुत
यूँ ही न मिल रही हैं शराफ़त को गालियाँ।२।
*
ये दौर नफरतों को फला इसलिए जनाब
देते हैं सारे लोग मुहब्बत को गालियाँ।३।
*
दूल्हे को बेच सोचते खुशियाँ खरीद लीं
देता न कोई ऐसी तिजारत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2021 at 5:30am — 8 Comments
दीप की लौ से निकलती रौशनी भी देख ली
और उस की छाँव बैठी तीरगी भी देख ली।१।
*
वोट देकर मालिकाना हक गँवाया हमने यूँ
चार दिन में सेवकाई आपकी भी देख ली।२।
*
दुश्मनी का रंग हम ने जन्म से देखा ही था
आज संकट के समय में दोस्ती भी देख ली।३।
*
आ न पाये होश में क्यों आमजन से दोस्तो
दे के उस ने तो हमें संजीवनी भी देख ली।४।
*
खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2021 at 2:09pm — 20 Comments
२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय मिलेगी प्यार लेकर।१।
*
युद्ध नित बर्बाद करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
*
जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा किस द्वार लेकर।३।
*
इस भवन का क्या करूँगा
तुम गये आधार लेकर।४।
*
नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
*
बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
*
कर गया कंगाल सब को
हर भरा सन्सार लेकर।७।
*
टूटती रिश्तों की माला
जोड़ ले कुछ तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
वैसे तो उसके मन की बातें बहुत सरस हैं
पर काम इस चमन में फैला रहे तमस हैं।१।
*
पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की
अब राम के मुखौटे कैसी लिए हवस हैं।२।
*
ये दौर कैसा आया मर मिट गये सहारे
चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।
*
पसरी जो आँगनों में उन से हवा लड़ेगी
इन से लड़ेंगे कैसे जो मन बसी उमस हैं।४।
*
उस गाँव में हैं अब भी बेढब सुस्वाद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
बेड़ियाँ टूटी हैं बोलो कब स्वयम् ही
मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
*
बाँधकर उत्साह पाँवों में चलो बस
पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
*
पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
*
अब न आयेगा यहाँ अवतार हमको
करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
*
कल जो सेवक हैं कहा करते थे देखो
हो गये है आज वो साहब स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का
हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।
*
बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते
बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।
*
नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस
दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।
*
होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही
चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।
*
स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है
रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।
*
सब के टिकी हुई है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments
हम तो हल के दास ओ राजा
कम देखें मधुमास ओ राजा।१।
*
रक्त को हम हैं स्वेद बनाते
क्या तुमको आभास ओ राजा।२।
*
अन्न तुम्हारे पेट में भरकर
खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।
*
पीता हर उम्मीद हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।
*
हम से दूरी मत रख इतनी
आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।
*
खेती - बाड़ी सब सूखेगी
जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments
हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर
पार जाने के लिए पतवार साथी तेज कर।१।
*
ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ
झील के पानी में थोड़ी मार साथी तेज कर।२।
*
जुल्म के पत्थर इसी से कट गिरेंगे देखना
पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।
*
काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं
सच कहेंगी बेड़ियाँ झन्कार साथी तेज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
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शेष इस में क्या रहा इनकार कहने के लिए
कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।
*
काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन
यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए।२।
*
इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं
शेष है बस नाम ही अखबार कहने के लिए।३।
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काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें
बात ही उस की रही दमदार कहने के लिए।४।
*
सब दिहाड़ी पर बुलाए उस के ही मजदूर थे
लोग जितने भी जुटे आभार कहने के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments
नहीं कुछ गाँव सा सुनता हुआ निष्ठुर नगर
दिखाने घाव मत जाना सखा निष्ठुर नगर।१।
*
उसे डर है कि उसके हित कमीं आजायेगी
नहीं देता किसी का भी पता निष्ठुर नगर।२।
*
नदी सूखी हुई कहती है प्यासे खेत से
तेरे हिस्से का पानी पी गया निष्ठुर नगर।३।
*
कहाँ तुम बात दुख की यार करते हो भला
खुशी तक में अकेला ही दिखा निष्ठुर नगर।४।
*
निकल पाया न खुद के व्यूह से सायास…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2021 at 8:59am — 9 Comments
दो आशीष नया हो भारत
जग में और बड़ा हो भारत।१।
*
आयु बढ़े नित जितनी इसकी
उतना और युवा हो भारत।२।
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ज्ञाता हो विज्ञान का लेकिन
साथ ही वेद पढ़ा हो भारत।३।
*
दुख के नाले सब सूखे हों
सुख का एक किला हो भारत।४।
*
जिनके घर ढब बन्द पड़े हैं
कहते और खुला हो भारत।५।
*
उनको सबक सिखाना वीरों
जिनकी चाह डरा हो भारत।६।
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सीमाओं का द्वन्द मिटाकर
दोनों ओर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 8:30am — 9 Comments
२२/२२/२२/२२
तोड़ के घर का ताला उसने
ढूँढा सिर्फ निवाला उसने।१।
*
लत पीने की ऐसी लगायी
बेच दी माँ की माला उसने।२।
*
खुद औरों के कन्धे पर चढ़
कहता बोझ सँभाला उसने।३।
*
दूध पिलाना था बच्चों को
पर नागों को पाला उसने।४।
*
जिसको हमने माना सूरज
रोका नित्य उजाला उसने।५।
*
जिसको सब खोटा कहते हैं
सिक्का वही उछाला उसने।६।
*
अपनों को ही चोट है मारी
फेंका जब जब भाला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2021 at 6:35am — 10 Comments
२२/२२/२२/२२
दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी एक मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया रोज उतरती होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments
२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
*
खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
*
बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
*
बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
*
घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
*
देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
*
संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
*
दम घोटे है नित जनता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
*
महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
*
व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
*
हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
*
खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
*
मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
*
तन का है या मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
*
आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
*
जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
*
बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
*
पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
*
बाँटना …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
*
उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
*
इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
*
खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
*
सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 27, 2020 at 8:32pm — 6 Comments
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