छंद मदन/रूपमाला
(चार चरण: प्रति चरण २४ मात्रा,
१४, १० पर यति चरणान्त में पताका /गुरु-लघु)
मजदूर दिन
मजदूर दिन जग मनाता, शान से है आज।
कर्म के सच्चे पुजारी, तुम जगत सर ताज।।
प्रतिभागिता हर वर्ग की, देश आंके साथ।
राष्ट्र के उत्थान में है, हर श्रमिक का हाथ।१।
श्रम करो श्रम से न भागो, समझ गीता सार।
सोया हुआ भाग्य जागे, जानता संसार।।
श्रम स्वेद पावन गंग सम, बहे निर्मल धार।
श्रम दिलाता मान जीवन, श्रम प्रगति का द्वार।२।…
Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 4:00pm — 13 Comments
गंगा हमारी
भव ताप हारक, पाप नाशक, धरा उतरी गंग।
निर्मल प्रवाहित, प्रेम सरसित, करे मन जल चंग।।
सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग।
शिव हरि उपासक, साधु साधक, जपे सुर मुनि संग।१।
…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 30, 2014 at 10:30pm — 13 Comments
सारे नेता खेलते
सारे नेता खेलते, आज चुनावी खेल।
सत्ता के इस रूप में, द्रुपद सुता का मेल।।
द्रुपद सुता का मेल, पांडु सुत लगती जनता।
नेता शकुनी दाँव, चाल वादों की चलता।
लोक लुभावन खूब, लगाते ये हैं नारे।
चौसर बिछी बिसात, खेलते नेता सारे।१।
हांथी तीर कमान तो,कहीं हाँथ का चिन्ह।
कमल घडी औ साइकिल,फूल पत्तियाँ भिन्न।।
फूल पत्तियाँ भिन्न,दराती कहीं हथोडा।
झाड़ू रही बुहार,उगा सूरज फिर थोडा।।
देख चुनावी रंग, ढंग अपनाता साथी।
मर्कट…
Added by Satyanarayan Singh on April 29, 2014 at 7:30am — 9 Comments
मनोरम छंद
(संक्षिप्त विधान : मनोरम छंद चार पक्तियों या पदों का वर्णिक छंद है. जिसके प्रत्येक पद में चार सगण और अंत में दो लघु वर्ण / अक्षर का विधान हैं।)
लगती छबि मीत !
लगती छबि मीत मुझे मन भावन।
मन चंद चकोर समान लुभावन।।
मन प्रीत रिसे सुख पाय सुहावन।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 24, 2014 at 10:30pm — 12 Comments
याद तेरी आविनाशी!
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मिलन तुम्हारा बारहमासी
कभी लगा ना उबासी
यादें तव मन मंदिर जग गयी
अलखन जगे जिमि काशी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
संग तुम्हारा था मधुमासी
मन ना छायी उदासी
चाँद सितारों में जा बस गयी
मधुर हँसी की उजासी
आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी
याद तेरी अविनाशी!
मेरी दुनिया प्रेम पियासी
रसमयी…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 22, 2014 at 11:07pm — 14 Comments
भारत हमारा
(कामरूप छंद)
भारत हमारा, देश न्यारा, सृष्टि का उपहार।
तहजीब अपनी, गंग जमुनी, नाज जिसपर यार।।
सीख दे ममता, और समता, कर्म गीता सार ।
जनतंत्र आगर, विश्व नागर,…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on April 21, 2014 at 10:30pm — 15 Comments
ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे
स्वागत तव ऋतुराज
चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।
गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।
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बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।
गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।
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पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।
गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।
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जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।
तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।
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झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।
इस अनुपम श्रृंगार…
Added by Satyanarayan Singh on February 3, 2014 at 5:30pm — 23 Comments
Added by Satyanarayan Singh on December 27, 2013 at 5:00pm — 17 Comments
दीवाली के दोहरे
होती है हर एक को, रिद्धि सिद्धि की चाह।
दीप पर्व दिखला रहा, अंतर मन को राह।१।
उनका जीवन पथ चुनें, करें आत्म उत्थान।
जिनके जीवन में मिला, यश कीरत…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on November 3, 2013 at 7:00pm — 28 Comments
कुण्डलिया छंद
गोविंदा की टोलियाँ, निकल पड़ी चहुँ ओर।
दधि माखन की खोज में, बनकर माखन चोर।।
बनकर माखन चोर, करें लीला बहु न्यारी।
फोड़ें मटकी श्याम, बचाओ गगरी प्यारी।।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on August 28, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
ऊब गया मैं ऊब गया
रोज किताबों को पढ़कर !
भाषा की सरल किताबों में
जब व्याकरण की मार पड़ी
छंद विधानों में उलझा
तब जोड़ न पाया कोई लड़ी…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on July 12, 2013 at 11:00am — 8 Comments
पानी को ललात कहीं, दिखी भीड़ बिललात।
लम्बी सी कतार लगी, पात्र रीते घूरते।।
सूख गए कूप सारे, सूने पड़े नल कूप।
सूखी नदियों के घाट, मन देख खीझते।।
जल की…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 30, 2013 at 12:30am — 10 Comments
ओबीओ के समस्त सदस्यों को होली की मंगलमय शुभ कामनाएं
फाग अनुरागी बना, जगत बिरागी मन।
सुन्दर बसंती छटा, लगी मन…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 27, 2013 at 12:00am — 8 Comments
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