For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Savitamishra's Blog (28)

स्व रक्षार्थ का भार भेजा है (तुकांत कविता )

रक्षा सूत्र में पिरोकर अपना प्यार भेजा है

भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है|



माना मन में तेरे राखी का सम्मान नहीं  

बड़े मान से हमने अपना दुलार भेजा है|



रिश्ता भाई बहन  का हैं एक अटूट बंधन

होता  जार जार जो सब जोरजार भेजा है|



ढुलक गया मोती जो मेरी नम आँखों से

 पिरोकर मोती  हमने उपहार भेजा है|



गिले शिकवे भूल सारे फिर एक बार

  सहेज कर यादें लिफ़ाफ़े में मधुर भेजा है|



राखी दो पैसे की हो  या हजारों की भैया…

Continue

Added by savitamishra on August 7, 2014 at 11:00am — 7 Comments

अतुकांत कविता .....प्रवृत्ति.....

एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं सुख-दुःख,

फिर क्यों लगता है -

-सापेक्ष सुख के नहले पर दहला सा दुःख ?

- सुख मानो ऊंट के मुहं में जीरा-सा ?

आखिर क्यों नहीं हम रख पाते निरपेक्ष भाव ?



प्यार-नफ़रत तो हैं सामान्य मानवी प्रवृत्ति !

फिर भी -

प्यार पर नफ़रत लगती सेर पर सवा सेर ,

प्यार कितना भी मिले दाल में नमक-सा लगता !

थोड़ी भी नफ़रत पहाड़ सी क्यों दिखती है आखिर ?



होते हैं…

Continue

Added by savitamishra on August 5, 2014 at 10:01am — 38 Comments

चोका

मेघ निबह

श्याम श्वेत निर्मोही

भ्रम फैलाये

उड़ती घटा छाये

सूर्य आछन्न

दुविधा में फंसाए

काम बढाए

अकस्मात बरखा

बाहर डाले

कपड़े निकालते

फिर डालते

गृहलक्ष्मी दुचित्ता

क्रोध बढ़ाए

उलझौआ पयोद

वक्त कीमती

दुरुपयोग होता

वक्त भागता

सुना था कभी कही

खुद पे बीती

खीझ दुघडिया पे

भुनभुनाती

काम है निपटाने

प्रावृट् बदरा

तुझे सूझे नौटंकी

घुंघट ओढ़

हुई तू तो बावरी|

तंग गृहणी

मेघ निरंग निस्तारा

भ्रान्ति…

Continue

Added by savitamishra on August 4, 2014 at 12:21pm — 19 Comments

अतुकांत कविता

सोचा था आईने की तरह

साफ़ रखूँगी अपना चेहरा

पर कुछ तो है जो छिपा जाती हूँ

यूँ भाव चेहरे के बदल लेती हूँ

कि कहीं प्रतीयमान न हो जाये|



बोलती थी कभी बेधड़क हो

कुछ तो है जो किसी कोने में

मौनव्रत रख बैठ जाती हूँ

कि कही कुछ प्रतीप न हो जाये|



आँखों में भी दिखता था कभी

दूसरे की गलत बातो का प्रतिकार

पर किसी का तो डर है जो

अब आँखों को झुका लेती हूँ…

Continue

Added by savitamishra on July 30, 2014 at 3:30pm — 20 Comments

हायकु

भूख

====



भूख हायकु

विचलित है मन

शब्द मनन|



पत्तल झूँठा

चाट भरता पेट

अमीर शेष|



झूठन चाट

शांत की उदराग्नि

कुत्तों के संग|



भृत्य लाड़ले ...सेवक

अवशेष भोजन

भूख मिटाते|



सगाई-शादी

क्यों भोजन…

Continue

Added by savitamishra on July 1, 2014 at 9:00pm — 6 Comments

उफ़ गर्मी बहुत है रे ....

उफ़ गर्मी बहुत है रे

पैसे कौड़ी रह रह दिखाए

पास खड़ी खूब इतराए

महंगी से महंगी साड़ी पहने

गले में हीरो के लादे गहने

उफ़ गर्मी बहुत है रे ....



मंहगे पार्लर में जा के आये

कृतिम सुन्दरता पर भी इतराए

बालों की सफेदी मंहगे कलर से छुपाये

पैडी-मैनी क्योर न जाने क्या क्या करवाए

दात भी डाक्टर से चमकवाये

अपनी हर कुरूपता छुपाये

उफ़ गर्मी बहुत है रे.....



पति की नौकरी…

Continue

Added by savitamishra on June 18, 2014 at 11:21am — 18 Comments

हथियार

हथियार

==========

क्या नारी ने

सारी शक्तिया

समाहित कर ली हैं

खुद में ही

या इस्तेमाल हो रही हैं

हथियार की तरह

या हथियार बन

उठ खड़ीं हो गयी हैं

खुद ही संघार

करने के लिए

पापियों का

क्या अच्छे लोग भी

फंस रहे हैं इस

मकड़जाल में

खूब की हमने भी

माथा पच्ची पर

भगवान् ना थे हम

कि सुन-समझ-देख पाए

आखिर मांजरा क्या हैं

समझ पाए कि कौन

इस्तेमाल हो रहा हैं

कौन किया जा रहा हैं…

Continue

Added by savitamishra on December 19, 2013 at 10:00am — 14 Comments

अतुकांत कविता .... लड़ूँगी प्रभु से

सोच रही हूँ
लड़ूँगी प्रभु से
जब मिलूँगी पर वह भी
डर से
छुपा बैठा है , आता ही नहीं
बुलाने पर हमारे हमारी जिन्दगी को
तबाह किये बैठा है , जिस दिन भी
मिलेगा सुनाउँगी
उसे बहुत जानता हैं
वह भी शायद
इसी लिए मेरी जिन्दगी
की डोर को
ढील दिए
बैठा है ....
.
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by savitamishra on December 7, 2013 at 12:00pm — 22 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service