छाँव बने तन भाव जगे मन चाव सजे चहकी फुलवारी ,
पावन भाव जगे मन में जब मात बनी यह देह हमारी,
ये वरदान मिला जग में जब बिटिया खेलत गोद हमारी,
चाव जगे इस जीवन के जब आँगन बीच सजी किलकारी,
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नन्हि परी जब मात पुकारत आतम हो जय धन्य हमारी
झांझर डोलत कोयल बोलत व्याकुल हो महकी अंगनारी
मीत सखी बन जाय सदा सब बात सुने अब मोरि दुलारी
मान करे सबका फिर भी प्रतिपात सहे जग में हर नारी
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जोगन प्रीत तजे रसना सब भोग सजे मुख खावत नाही
कृष्ण सदा बसते मन में सब भार…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 25, 2016 at 11:00pm — 6 Comments
2122 2122 2122
जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में
आज अपनों से हुआ अब सामना है
हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने
तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है
हाथ जो भरते है उसकी मांग सूनी
उम्र भर का साथ ही अब कामना है
डोलियां उठती है जो शहनाइयों में
अर्थियां उनकी सजाना हाँ... मना है
चाहतें अपनी तभी तक हैं अधूरी
इश्क में अश्कों भरा दिल गर सना है
"मौलिक व…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 7:30pm — 11 Comments
छोटे मुँह की बात भी,ऊँची राह सुझाय ।
सीख कहीं से भी मिले, सीखो ध्यान लगाय ।।
औरन को अपना कहें , सुनते उनकी बात ।
अपनों की सुध है नहीं, उनसे करते घात।।
ऐसा नाम कमाइए, मन के खोले द्धार ।
अपनों की सुध लीजिये, बढे प्रेम व्यव्हार ।।
खुशियों की खामोशियां , खा जाती सुख चैन।
यादें ना हो साथ तो ,दिन बीते ना रैन ।।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
दोहे (एक प्रयास )
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नैनन में ममता लिए,होंठों पर मुस्कान।
भिड़ जाए सन्सार से , जातक पे कुर्बान।।
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अञ्चल में माँ सींचती,अमृत का भण्डार।
ऋषि हो चाहे देवता ,सीस झुकाते द्वार।।
-.-
संघर्षों से डरू नहीं ,माँ तुम हो जो पास ।
अंधेरे जब बढ़ गए,पाई तुमसे आस ।।
-.-
माता तुम जो बोलती, वहि मेरा है कर्म।
पाया भाव यहि तुमसे , जीवित रखना धर्म।।
-.-
कान्हा हो सुत रूप में ,चाहे हो बलराम।
मात यसोदा रूप है, नित्ये करो प्रणाम…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 8, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
अंधकार में उजली बातें, लहू से बोझिल होती रातें
इक दूजे को काट रहे सब , डर का कारोबार बढ़ा है
ग़ुरबत झेल रहा अन्नदाता, वादों का व्यापार बढ़ा है
छिन्न भिन्न लाचार व्यवस्था, खेतो का अस्तित्व कड़ा है
लक्ष्मी पूजन कन्या पूजन, इतिहास न हो जाए
जननी रूठ गई जो जग से, वंश व्रद्धि पर प्रश्न पड़ा है
भावी पीढ़ी भटक रही है, गफलत के गलियारों में
भीख मांगता कोमल बचपन, यौवन आरक्षण में गड़ा है
अभी आजादी बाकी है, एक संग्राम बाकी है…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 3, 2016 at 4:00pm — 10 Comments
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