कविता गीत ग़ज़ल रूबाई।
सबने माँ की महिमा गाई।।
जल सा है माँ का मन निर्मल
जलसा है माँ से घर हर पल
हर रँग में रँग जाती है माँ
जल से बन जाता ज्यों शतदल
माँ गंगाजल, माँ तुलसीदल
माँ गुलाबजल, माँ है संदल
जल-थल-नभ, क्या गहरी खाई।
माँ की कभी नहीं हद पाई।
कविता गीत----------------
माँ फूलों की बगिया जैसी
रंगों में केसरिया जैसी
माँ भोजन में दलिया जैसी
माँ गीतों में रसिया जैसी
माँ…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 20, 2014 at 11:04pm — 12 Comments
यदा यदा हि धर्मस्य--------
1
मानव देह धरी अवतारी, मन सकुचौ अटक्यो घबरायो।
सच सुनके कि देवकीनंदन हूँ मैं जसुमति पेट न जायो।
सोच सोच गोकुल की दुनिया, सब समझंगे मोय परायो।
सुन बतियन वसुदेव दृगन में, घन गरजो उमरो बरसायो।
कौन मोह जाऊँ गोकुल मैं, कौन घड़ी पल छिन इहँ आयो।
कछु दिन और रुके मधुसूदन, फिरहुँ विकल कल चैन न पायो।
परम आत्मा जानैं सब कछु, ‘आकुल’ मानव देह धरायो।
कर्म क्रिया मानव गुण अवगुण, श्यामहिं चित्त तनिक…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 18, 2014 at 5:00pm — 7 Comments
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